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काम वालियां और इंसानियत

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार घर में दाल बचे या रोटी, इडली, सांभर, सब्जी, मिठाई, अचार भी बचे तो लगता है, चलो काम वाली को दे देंगे. वह खा लेगी. यही नहीं, कोई कपड़ा पसंद न आये, कोई चीज पुरानी पड़ गयी हो, फेंकने लायक लगती हो, तो लगता है अपनी काम वाली है न, ले […]

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

घर में दाल बचे या रोटी, इडली, सांभर, सब्जी, मिठाई, अचार भी बचे तो लगता है, चलो काम वाली को दे देंगे. वह खा लेगी. यही नहीं, कोई कपड़ा पसंद न आये, कोई चीज पुरानी पड़ गयी हो, फेंकने लायक लगती हो, तो लगता है अपनी काम वाली है न, ले जायेगी. यानी जो कुछ हम इस्तेमाल नहीं कर सकते, हमारे उपयोग का नहीं, या हमें नापसंद है, तो वह काम वालों या काम वालियों के हिस्से आ जाता है.

दरअसल हम इस 21वीं सदी में भी हिंदी फिल्मों या पुरानी कहानियों के उस युग में रह रहे हैं, जहां घर के काम वाले बेहद दयनीय, गरीब और हमारी कृपा पर निर्भर होते थे.

वे किसी बात का विरोध भी नहीं कर पाते थे, क्योंकि उन्हें काम जाने और अपनी रोजी-रोटी की चिंता होती थी. उन्हें मार-पीट का सामना भी करना पड़ता था. तरह-तरह की हिंसा झेलनी पड़ती थी. पुरानी फिल्मों में अक्सर घर के नौकर-नौकरानियां घर के मालिक-मालकिन के चरण छूते और उन पर अपनी पगड़ी रखते दिखते हैं. वे अक्सर रोते-गिड़गिड़ाते नजर आते हैं.

अब वक्त बदल गया है. काम वाले अब उन लोगों पर निर्भर नहीं, जिनके यहां वे काम करते हैं. न ही वे फिल्मी काम वालों की तरह दाने-दाने को मोहताज, दयनीय हैं. दिल्ली जैसे महानगर में तो हालत यह है कि काम ज्यादा है और काम वाले कम. इसलिए इन दिनों वे अपनी शर्तों पर ही काम करते हैं. वे पुराने कपड़े लेने से परहेज करते हैं.

बचा-खुचा और बासी खाना भी उन्हें पसंद नहीं.और इसमें गलत भी क्या है. अगर उन्हें अपने स्वास्थ्य की चिंता है, तो इसमें बुरा क्या है. यह तो अच्छी बात है. असल में तो उनके स्वास्थ्य की चिंता उन लोगों को करनी चाहिए, जिनके लिए वे काम करते हैं, क्योंकि अगर ये न हों, तो डबल इनकम या डिंक ग्रुप वालों का काम करना दूभर हो जाये.

काम वालों की बदली आदत से उनके काम की स्थितियों में भी बदलाव हुआ है. उनका सम्मान करना भी लोग सीख रहे हैं. इंसान होने का तकाजा भी यही है कि हम दूसरे को इंसान मानें.

कोई हमारे लिए काम करता है, इस कारण से वह हमसे छोटा नहीं हो जाता. न ही ऐसा है कि वह इंसान नहीं रहता. वह भी इसी देश में रहता है और इस देश का उतना ही नागरिक है जितने कि हम और आप. इसलिए हमें इन बातों से मुक्ति पानी चाहिए कि जो कुछ बचेगा, उसे घर की काम वाली खा लेगी और जो चीज हम इस्तेमाल नहीं करना चाहते, उसे काम वाले या नौकर को देकर छुटकारा पा लेंगे.काम वाले भी इंसान हैं, इसलिए हमें उनके आत्मसम्मान की कद्र करनी चाहिए.

इसके अलावा, यदि घर में काम करनेवाला बीमार हो जाये, तो घर के मालिक की जीवनचर्या में भी मुश्किल खड़ी हो जाती है. ये ठीक हों, तभी घर चल सकता है, वरना तो घर का हर काम पटरी से उतर जाता है. सच तो यह है कि यदि काम वाले-वालियां न हों, तो कम-से-कम महानगरों में रहनेवालों का जीवन और नौकरियां अच्छी तरह न चल सकें.

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