आरक्षण की दिशा और दशा
जन्म के आधार पर आरक्षण देकर मेधा को कुंठित करने की दूसरी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं दिखती. दलितों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर जो प्रावधान संविधान द्वारा उन्हें दिया गया है, उसका दुरुपयोग किया जा रहा है. न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अगर त्वरित जांच (अधिकतम एक […]
जन्म के आधार पर आरक्षण देकर मेधा को कुंठित करने की दूसरी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं दिखती. दलितों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर जो प्रावधान संविधान द्वारा उन्हें दिया गया है, उसका दुरुपयोग किया जा रहा है.
न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अगर त्वरित जांच (अधिकतम एक सप्ताह) के बाद गिरफ्तारी या अन्य कानूनी प्रावधानों का फैसला दिया है, तो इसमें राजनीतिक माथापच्ची, हिंसा तथा आगजनी जैसी घटनाओं को उकसाने और अंजाम देने की जद्दोजहद का अर्थ समझ से परे है. क्या विपक्ष अपनी खोयी राजनीतिक जमीन तलाशने के अवसर के रूप में इसका प्रयोग करना चाहती है या फिर वास्तव में इस फैसले को दलितों ने अपने वजूद का संघर्ष बना लिया है?
इसका समाधान तभी हो सकता है जब संविधान द्वारा प्रदत्त ‘अवसर की समानता’ की रक्षा के लिए कानून की नजर में सबको समान मानते हुए अपनी व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर ‘सर्वोत्तम के चयन’ के लिए आरक्षण प्रदान करने वाली व्यवस्था का वैकल्पिक आधार न ढ़ूंढ़ लिया जाए.
अजय झा, कोलकाता