गरीबों के दाल-भात के बारे में सोचिए

15 अगस्त 2011 को झारखंड सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की जिसका मकसद था कि शहरों-कस्बों में कोई भी गरीब इनसान मजबूरी में भूखा न रहे. योजना को नाम दिया गया- ‘मुख्यमंत्री दाल-भात योजना’. इसके तहत राज्य में 370 केंद्र खोले गये. इन केंद्रों से रोज तकरीबन डेढ़ लाख गरीबों का पेट भर रहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2014 4:45 AM

15 अगस्त 2011 को झारखंड सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की जिसका मकसद था कि शहरों-कस्बों में कोई भी गरीब इनसान मजबूरी में भूखा न रहे. योजना को नाम दिया गया- ‘मुख्यमंत्री दाल-भात योजना’. इसके तहत राज्य में 370 केंद्र खोले गये. इन केंद्रों से रोज तकरीबन डेढ़ लाख गरीबों का पेट भर रहा था. लेकिन, अब योजना अघोषित रूप से बंद हो गयी है. क्योंकि सरकार दाल-भात केंद्रों को रियायती चावल नहीं उपलब्ध करा पा रही है.

राज्य के अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार इस योजना के लिए चावल नहीं दे रही है. राज्य और केंद्र के बीच की इस खींचतान का खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है जो आर्थिक रूप से समाज के हाशिए पर रह रहे हैं. दाल-भात योजना का लाभ सबसे ज्यादा उन गरीबों को मिल रहा था जो गांव में जीवनयापन न हो पाने की वजह से रोजी-रोटी की तलाश में कस्बों व शहरों में पहुंचते हैं और रिक्शा, ठेला खींचने जैसे काम करते हैं. इन कामों में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर रोज 100-200 रुपये की कमाई हो पाती है. इस आमदनी में शहरों-कस्बों में गुजारा करना बहुत कठिन है.

रहने का ठिकाना ये लोग झुग्गी-झोपड़ियों में और फुटपाथ पर बना लेते हैं. पर खाने का इंतजाम कैसे हो? दोपहर में काम के दौरान खुद खाना बना पाना मुमकिन नहीं हो पता. और, अगर किसी ढाबे में खाना खाते हैं तो कम से कम 30-35 रुपये का खर्च आयेगा. इतना पैसा खाने में खर्च कर देने के बाद वह क्या बचायेगा और कैसे परिवार को पालेगा! ऐसे में दाल-भात योजना उनके लिए बड़ा सहारा थी. सिर्फ पांच रुपये में भरपेट भोजन मिल जाता था. इससे होनेवाली छोटी बचत के उनके परिवारों के लिए बड़े मानी थे.

झारखंड सरकार को संवेदनशीलता दिखाते हुए कैसे भी इन गरीबों के लिए यह योजना तुरंत चालू करनी चाहिए. जब यह योजना बंद नहीं हुई थी, तब भी भोजन की गुणवत्ता को लेकर सवालिया निशान लगा हुआ था. शुरू से ही इस योजना के प्रति लापरवाही नजर आ रही थी. तमिलनाडु में भी ऐसी ही योजना चल रही है और उसकी सफलता की चर्चा आज हर जगह है. जयललिता सरकार की लोकप्रियता इस योजना से काफी बढ़ी है. झारखंड सरकार को इससे सीखना चाहिए.

Next Article

Exit mobile version