नेपाल से मधुर रिश्तों की चुनौती

II आशुतोष चतुर्वेदी II प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in भारत और नेपाल के रिश्ते सदियों पुराने हैं. लेकिन उनमें उतार-चढ़ाव आता रहा है. भारत और नेपाल के बीच जैसा जुड़ाव है, वैसा दुनिया में किसी अन्य देश के बीच नहीं है. हम भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक हर तरह से एक दूसरे से जुड़े रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 9, 2018 6:54 AM
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II आशुतोष चतुर्वेदी II
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
भारत और नेपाल के रिश्ते सदियों पुराने हैं. लेकिन उनमें उतार-चढ़ाव आता रहा है. भारत और नेपाल के बीच जैसा जुड़ाव है, वैसा दुनिया में किसी अन्य देश के बीच नहीं है. हम भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक हर तरह से एक दूसरे से जुड़े रहे हैं. भारत और नेपाल ने अपने विशेष संबंधों को 1950 की भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि से नयी पहचान दी.
इस अंतरराष्ट्रीय संधि के माध्यम से दोनों देशों के संबंधों के आयाम निर्धारित किये गये. संधि के अनुसार दोनों देशों की सीमा एक-दूसरे के नागरिकों के लिए खुली रहेगी और वे उन्हें एक-दूसरे के देशों में बेरोकटोक आ जा सकेंगे और उन्हें काम करने की छूट होगी. यही संधि दोनों देशों के बीच एक गहरा रिश्ता स्थापित करती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के तुरंत बाद पड़ोसी देशों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया.वह नेपाल की यात्रा पर भी गये. नेपाल में आये भूंकप के दौरान भारत ने तत्काल मदद के लिए हाथ बढ़ाया और राहत एवं बचाव कार्य में अहम भूमिका निभायी थी. इससे दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ हुए और लगा कि रिश्ते नये मुकाम तक पहुंचेंगे. लेकिन मधेसी और अन्य मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच खटास आ गयी और हाल के दौर में तो दोनों देशों के बीच अविश्वास और बढ़ गया है.
नेपाली नेतृत्व के चीन की ओर झुकाव को लेकर भारत चिंतित हुआ है. यहां तक कि हाल के दिनों में नेपाली प्रधानमंत्री ओली के चीन के साथ नजदीकियों को देखते हुए भारत-नेपाल के बीच संबंध बिगड़ने की आशंका जतायी जा रही थी. उनके शुरुआती बयानों से इस आशंका को और हवा मिली.
उन्होंने घोषणा की थी कि नेपाल चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना में शामिल होगा. लेकिन चीन के बजाय भारत की पहली विदेश यात्रा कर ओली ने रिश्तों को पटरी पर लाने की दिशा में पहल की है. उन्होंने अपनी इस यात्रा से स्पष्ट संदेश दिया है कि नेपाल की पहली प्राथमिकता भारत है और उसके सहयोग के बिना नेपाल में स्थायी शांति और आर्थिक विकास संभव नहीं है.
प्रधानमंत्री ओली की इस यात्रा के दौरान रेल सेवा पर समझौता हुआ है. इसके तहत काठमांडू और दिल्ली सीधे रेल लाइन से जुड़ जायेंगे. इसके अलावा दोनों देशों के बीच नदी परिवहन के रास्ते खोले जाने पर सहमति हुई है.
दोनों प्रधानमंत्रियों ने मोतिहारी और अमलेखगंज के बीच तेल पाइपलाइन की आधारशिला रखी और बीरगंज में नये इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट का उद्घाटन किया. भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए तीन समझौतों को दोनों देशों के बीच संबंधों की नयी इबारत माना जा रहा है. इनमें सबसे अहम रक्सौल और काठमांडू के बीच रेललाइन बिछाना है. जल परिवहन के लिए बनी सहमति को भी ऐतिहासिक करार दिया जा रहा है. इससे जमीन से घिरे नेपाल को नदियों के माध्यम से समुद्र तक पहुंचने का रास्ता मिल सकता है.
भारत ने नेपाल में कृषि के विकास के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है. भारत कृषि के विकास में अपने अनुभवों और नयी तकनीकों को साझा करेगा. यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ओली जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय भी गये और उन्होंने वहां कृषि क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों का जायजा भी लिया.
वैसे देखा जाये तो नेपाल की एक बड़ी चुनौती है, वहां की राजनीतिक अस्थिरता. राजशाही के बाद पिछले दस वर्षों में नेपाल इतने ही प्रधानमंत्री देख चुका है. इसमें प्रचंड दो बार और ओली भी दोबारा प्रधानमंत्री बने हैं. 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद नेपाल में जनतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई. लेकिन यह मजबूती से अब तक पैर नहीं जमा पाया है. वहां अब भी राजनीतिक अस्थिरता का बोलबाला है.
नेपाल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से भारत पर निर्भर है. वर्तमान में भारत-नेपाल आर्थिक सहयोग के तहत छोटी बड़ी लगभग 400 परियोजनाएं चल रही हैं. वहां उद्योग-धंधे नगण्य हैं. भारत में लगभग 50 लाख नेपाली नागरिक काम करते हैं. वे नेपाल में अपने परिवारों को अपनी कमाई का एक हिस्सा भेजते हैं. यह राशि नेपाल की जीडीपी में प्रमुख योगदान देती है.
बिहार का तो नेपाल के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता रहा है. नेपाल का दक्षिणी इलाका भारत की उत्तरी सीमा से सटा है. यह तराई वाला इलाका है, जो मधेस के नाम से जाना जाता है. राजनीतिक कारणों से नेपाली नेताओं ने पर्वतीय वासियों और तराई वासियों के बीच एक अविश्वास का भाव रहा है. पिछले दिनों संविधान में उचित प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर मधेसी लोगों ने आंदोलन छेड़ दिया था. उन्होंने भारत से नेपाल को रसद और तेल की आपूर्ति के सारे मार्गों की नाकाबंदी कर दी थी.
उसकी वजह से उत्तरी नेपाल में रहने वाली जनता को रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा था. उस दौरान ओली समेत अन्य अनेक नेताओं ने इस नाकेबंदी का सारा दोष भारत पर मढ़ दिया था.
इससे नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को बल मिला. भले ही भारत इससे इनकार करे, लेकिन यह कोई रहस्य नहीं है कि नेपाल के राजनीतिक समीकरणों में भारत की अहम भूमिका रहती है. लेकिन इस सबसे भारत नेपाल संबंधों में कड़वाहट काफी बढ़ गयी और चीन ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश की. भारत-नेपाल के रिश्तों के बीच खटास का एक अन्य प्रमुख कार ण नदी जल विवाद भी र हा है.
भार त अरसे से कोसी नदी पर  बांध बनाये जाने की मांग नेपाल से करता आया है. इससे नेपाल में बिजली उत्पादन भी संभव हो पायेगा. इसके लिए भारत ने पूरी मदद का आश्वासन भी दिया है. बिहार का एक बड़ा इलाका हर साल कोसी नदी की बाढ़ की चपेट में आ जाता है. दूसरी ओर नेपाल का कहना है कि बांध बनाने से नेपाल की जमीन का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब जायेगा. नेपाल सर कार  का हमेशा से इस मामले टालमटोल रवैया रहा है.
भारत और नेपाल के दशकों पुराने विशिष्ट संबंध आज तनाव का ताप झेल रहे हैं. चीन तो चर्चा में अभी आया है. भारत का हमेशा से नेपाल पर व्यापक प्रभाव रहा है. यह चिंता का विषय है कि इतने घनिष्ठ और मधुर संबंधों में यह अविश्वास की फांस कैसे पैदा हुई? यह सही है कि भारत ने घोषणा कर रखी है कि वह नेपाल के आंतरिक और राजनीतिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है.
लेकिन भारत के नेपाल में इतने हित हैं कि हकीकत में ऐसा होता नहीं है. लेकिन हस्तक्षेप उतना ही हो, जिससे नेपाल की जनता का भरोसा न टूटे और लोगों को यह न लगे कि भारत बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है और आंतरिक मामलों पर एक तरह से हुक्मनामा सुना रहा है. भारत को नेपाल से रिश्तों की मधुरता हर हालत में कायम रखनी होगी, ताकि चीन को वहां पांव जमाने का कोई अवसर न मिले.
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