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कॉलोनी के विकास के लिए
पूरन सरमा टिप्पणीकार मोहल्ले के विकास में कोई दो राय नहीं है अब, क्योंकि चंदे की रसीदें बड़ी द्रुतगति से काटी जा रही हैं.वे पांच लोग थे, जिन्हें देखकर सामान्य गृहस्थ थर-थर कांपने लगते थे. वे आते, खीसें निपोरते तथा गंदे दांत दिखाकर कहते- ‘देखिये साहब, थोड़ी देर हमारे साथ भी चलिये, आखिर सामुदायिक विकास […]
पूरन सरमा
टिप्पणीकार
मोहल्ले के विकास में कोई दो राय नहीं है अब, क्योंकि चंदे की रसीदें बड़ी द्रुतगति से काटी जा रही हैं.वे पांच लोग थे, जिन्हें देखकर सामान्य गृहस्थ थर-थर कांपने लगते थे. वे आते, खीसें निपोरते तथा गंदे दांत दिखाकर कहते- ‘देखिये साहब, थोड़ी देर हमारे साथ भी चलिये, आखिर सामुदायिक विकास का मामला है.’
मैं डर जाता और कहता हूं- ‘भाई, मुझे तो बाजार जाना है. अब बताइये क्या प्रोग्राम है. मेरा मतलब कोई चंदे की बात हो, तो मेरा पूरा योगदान है.’
तब उनमें से एक आदमी रसीद बुक लेकर आगे बढ़ता है और कहता है कि देखिये कल पौष बड़ों का कार्यक्रम है. भगवान का काम है- जो भी देना हो स्वेच्छा से दे दीजिये. मन में आता है कि स्वेच्छा से तो मैं फूटी कौड़ी भी नहीं देना चाहता. लेकिन, मन मारकर कहता- ‘अब बताइये भी, और लोग क्या दे रहे हैं?’
‘देखिये, अभी तक 51 रुपये से कम तो किसी ने दिये ही नहीं हैं. फिर आप तो पढ़े-लिखे हैं. समिति के समझदार तथा सक्रिय सदस्य हैं. अपने लोग ही नहीं समझेंगे इसके महत्व को, तो और लोग भला क्या देंगे? फिर साहब इस बहाने काॅलोनी में एक कार्यक्रम हो जाता है, मिलना-जुलना भी हो जाता है.’ उनमें से एक आदमी यह रटा हुआ जुमला उगल देता है.
मैं यही कह पाता- ‘सही फरमा रहे हैं आप. मोहल्ले का तथा काॅलोनी का विकास इसी तरह सभी के सहयोग से होता है. यह क्या कम है कि कोई कुछ नहीं कर पाता और आप पांच लगे रहते हैं विकास कार्यों में. आप ही की देन है कि रोड लाइट्स तीस पर्सेंट जल रही हैं तथा सीवर लाईन भी ठीक-ठाक है.
यह बात दीगर है कि कुछ जगह सीवर से पानी बाहर आकर रोगों को खुला आमंत्रण दे रहा है, पर आप अकेले करें भी क्या-क्या? लीजिये यह 51 रुपये, बच्चों की फीस बाद में जमा करवा दूंगा. पहले मोहल्ले का विकास. यदि विकास समिति नहीं होती न, तो सच कहता हूं कि हमारा पार्क भी कूड़ा घर बन जाता. यह आपका ही प्रयत्न है कि यहां आज मंदिर बनाने की सोच रहे हैं!’
वे एक-दूसरे के चेहरे देखते और फिर मुझे देखते और मुझे रसीद पकड़ाकर चलते बनते. यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती- कल अन्नकूट है, तो परसों मंदिर में किवाड़ लगेंगे.
इसके अलावा विकास समिति को मासिक विकास शुल्क अलग देना है. हालांकि, मंदिर समिति और विकास समिति, ये दोनों धाराएं अलग हैं, लेकिन एकता और अखंडता के लिए इसे मिला दिया गया है.
मेरे सामने समिति के उपाध्यक्ष रहते हैं, वे इन दिनों बड़े उदासीन हैं. उन्हें एक पद चाहिए था, वह मिल चुका है, अतः वह सदस्यों की हौसला अाफजाई के अलावा कुछ नहीं कर पाते. चंदा वे भी देते हैं, ताकि उनके उपाध्यक्ष पद को कोई खतरा उत्पन्न न हो.
पूरी काॅलोनी विस्मित रहती है कि यह विकास कौन कर रहा है. सफाई का तो हाल यह है कि कई बार एहसास होता है कि हम पेरिस में तो नहीं रह रहे!
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