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बगैर शिक्षक छात्रों की तलाश

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत बच्चों को सुलभ शिक्षा उपलब्ध करने के उद्देश्य से राज्य में नये हाइस्कूल और प्लस टू स्कूल खोल तो दिये गये, परंतु ये स्कूल अब भी बगैर शिक्षक के संचालित हो रहे हैं. चार – पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति […]

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत बच्चों को सुलभ शिक्षा उपलब्ध करने के उद्देश्य से राज्य में नये हाइस्कूल और प्लस टू स्कूल खोल तो दिये गये, परंतु ये स्कूल अब भी बगैर शिक्षक के संचालित हो रहे हैं. चार – पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर पायी है. इन विद्यालयों में जिन छात्रों ने नामांकन लिया है, वे भगवान भरोसे पढ़ रहे हैं. विडंबना यह कि सरकार अब ऐसे विद्यालयों को बंद करने चली है, जिनमें 200 से कम बच्चे हैं.
उन्हें बंद करने का फरमान जारी कर दिया गया है. गौर करनेवाली बात यह है. जिन स्कूलों में शिक्षक पदस्थापित होने के बाद भी बच्चे कम हैं, उन्हें बंद करने की बात समझ में आती है, लेकिन जिन स्कूलों को खोले जाने के बाद एक भी शिक्षक की नियुक्ति ही नहीं की गयी, उन्हें बंद का औचित्य क्या है?
आखिर वैसे स्कूलों में छात्र नामांकन ही क्यों करायेंगे, जहां शिक्षक ही नहीं हैं? सरकार को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए.
युगल किशोर पंडित, गिरिडीह

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