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वोट देने निकलिए बाद में कोसने से कुछ नहीं होगा
II अनुज कुमार सिन्हा II 16 अप्रैल. झारखंड में निकाय चुनाव का दिन. आपका एक वाेट किसी की जीत काे हार में आैर किसी की हार काे जीत में बदल सकता है. यह आपका अधिकार है. भारतीय संविधान ने आपकाे यह अधिकार दिया है. इसका उपयाेग करें. ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्याेंकि निकाय चुनाव […]
II अनुज कुमार सिन्हा II
16 अप्रैल. झारखंड में निकाय चुनाव का दिन. आपका एक वाेट किसी की जीत काे हार में आैर किसी की हार काे जीत में बदल सकता है. यह आपका अधिकार है. भारतीय संविधान ने आपकाे यह अधिकार दिया है.
इसका उपयाेग करें. ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्याेंकि निकाय चुनाव का इतिहास यही कहता है. लाेग घराें से वाेट देने निकलते नहीं हैं. मुश्किल से 20-25 फीसदी मतदान हाेता है. यानी 75-80 फीसदी लाेग घराें में आराम करते हैं. वहीं से कमेंट करते हैं, आलाेचना करते हैं-कुछ नहीं हाेनेवाला, ये लाेग जीतकर कुछ नहीं करेंगे, काेई बदलाव नहीं हाेगा, सभी एक ही तरह के हैं आदि-आदि.
हाे सकता है कि आप निराश हाें, क्याेंकि जीतने के बाद अधिकतर मेयर-डिप्टी मेयर, पार्षद आपका सुख-दुख जानने नहीं आते हाें, उनमें अकड़पन आ गया हाे, क्षेत्र में काम नहीं करते हाें, बेईमान भी हाें, कमीशनखाेरी करते हाें, लेकिन क्या आपके वाेट नहीं देने से चीजें बदल जायेंगी. स्थिति तभी बदलेेगी, जब आप घराें से निकल कर सही प्रत्याशी का चयन कर उसे वाेट देंगे.
यह भी हाे सकता है कि आपके नहीं निकलने से, वाेट नहीं देने से आपका अच्छा प्रत्याशी हार जाये. फिर बाद में पछताने से काेई लाभ नहीं हाेगा.
सबसे बड़ी बीमारी है वाेट देने के लिए नहीं निकलने का. लाेकसभा या विधानसभा चुनाव में थाेड़ी उत्सुकता रहती है, लाेग निकलते हैं, लेकिन निकाय चुनाव काे मजाक समझते हैं. साेचिए, यह काेई सामान्य चुनाव नहीं है.
जिन चीजाें से आपका राेज-राेज पाला पड़ता है, उसका संबंध इसी चुनाव से है. आपके घराें से कचड़ा उठाने, शहर की सफाई, शहर में पार्किंग की व्यवस्था, गली में सड़काें का निर्माण, शहर का सुंदरीकरण, स्ट्रीट लाइट से लेकर जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, लाल कार्ड आदि सभी में निकाय के प्रतिनिधियाें की बड़ी भूमिका हाेती है. अगर ये सक्रिय हाेते हैं, ताे आपका काम आसानी से हाेता है. अगर ये चुनाव जीतकर साे जाते हैं, ताे आपका जीवन नरक हाे सकता है. वह भी एक साल के लिए नहीं, पांच साल के लिए. इसलिए पांच साल झेलने आैर पछताने से बेहतर है अभी ही सही प्रत्याशी का चुनाव करें.
यह आसान काम नहीं है. इस शाेर में पता ही नहीं चलेगा कि काैन सही है. इसलिए दस मिनट समय निकालिए. अपने क्षेत्र के प्रत्याशियाें काे समझिए, फिर जाति-धर्म, दल से ऊपर उठ कर वाेट करिए.
इस चुनाव में आपकी झल्लाहट हाेगी ही. इस बार वार्ड के बंटवारे में इतनी गड़बड़ी की गयी है कि आपका मन टूट गया हाेगा. एक ही घर में पिता का एक वार्ड में, पुत्र का दूसरे वार्ड में. एक ही घर में पांच लाेगाें का सेंटर पिस्का माेड़ में, छठे का माेरहाबादी में. इतनी गड़बड़ी आैर काेई सुननेवाला नहीं. लेकिन अभी यह समय नहीं है. अगर आपकाे लगे कि माैजूद प्रतिनिधियाें ने काम नहीं किया है, आपकाे धाेखा दिया है, ताे आपके पास बदला निकालने का, बदलने का पूरा अवसर है.
निकालिए अपनी भड़ास. अगर उन्हाेंने सही काम किया है अच्छे प्रत्याशी हैं ताे उनके साथ खड़ा रहिए, फिर माैका दीजिए. यह आप खुद तय करें, किसी के झांसे में आये बगैर. यह सब आप तभी कर सकते हैं जब आप वाेट देने जायें. एक दिन की छुट्टी मिली है. इसका उपयाेग करें. अगर आपकाे पता नहीं है कि वाेट देने जाना कहां हैं, ताे खाेजिए. संभव है कि आपके घराें में परची नहीं गयी हाे. मतदान केंद्र की जानकारी पहले न हाे, ताे भी चुप नहीं बैठिए. खाेजिए.
आपका एक वाेट आपके वार्ड, शहर का भविष्य बदल सकता है. आप घराें से नहीं निकलेंगे आैर आपके एक वाेट नहीं देने के कारण काेई गलत व्यक्ति जीत कर आ जाये, ताे शायद आप अपने काे कभी माफ नहीं करेंगे. सिर्फ पछताएंगे. इसलिए फिर चाैकस कर रहा हूं-घराें से निकलिए, वाेट जरूर दीजिए. जिसे मन करे, उसे वाेट दीजिए लेकिन दीजिए जरूर.
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