जिम्मेदार बने ‘ओपेक’
II डॉ अश्वनी महाजन II एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच की 16वीं बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तेल उत्पादक एवं निर्यातक देशों से यह गुहार लगायी है कि वे तेल की कीमतों को निर्धारित करने में जिम्मेदारी बरतें. आज कच्चे तेल की कीमतें 73 डाॅलर प्रति बैरल पार कर गयी […]
II डॉ अश्वनी महाजन II
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच की 16वीं बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तेल उत्पादक एवं निर्यातक देशों से यह गुहार लगायी है कि वे तेल की कीमतों को निर्धारित करने में जिम्मेदारी बरतें. आज कच्चे तेल की कीमतें 73 डाॅलर प्रति बैरल पार कर गयी हैं. यह 2004 के बाद अधिकतम कीमत है.
बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तेल और गैस की पारदर्शी कीमत प्रक्रिया मानवता के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि अब भी बड़ी संख्या में लोगों के पास ऊर्जा नहीं पहुंच रही. ऐसे में तेल की कीमत को बढ़ाया जाना सही नहीं है. तेल उत्पादक देशों के भी हित में है कि वे तेल उपभोक्ता देशों के विकास को बाधित न होने दें, क्योंकि इससे उत्पादक देशों का भी नुकसान होगा.
बैठक में मौजूद तेल उत्पादक देशों के प्रतिनिधि अपना बचाव यह कहकर कर रहे हैं कि तेल की कीमतें मांग और पूर्ति के हिसाब से तय होती हैं और ऐसे मौके भी आ रहे हैं कि जब पूर्ति ज्यादा होने पर तेल उत्पादक देशों ने भारी छूट भी दी है.
साल 1973 से ओपेक देश कार्टेल बनाकर तेल कीमतों को कृत्रिम रूप से ऊपर रखने का प्रयास करते रहे हैं, जो एकाधिकारिक शक्तियों के दुरुपयोग का उदाहरण है.
एशिया प्रीमियम के नाम पर भारत और अन्य एशियाई देशों से अधिक कीमत वसूली जाती है, जबकि वही तेल यूरोपीय देशों को सस्ता दिया जाता है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच पर यह गुहार एक और कारण से भी मायने रखती है कि भारत की पहल पर अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन भी शुरू हुआ है.
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वैश्विक पर्यावरण को बचाने के लिए भारत सौर ऊर्जा के प्रयोग के लिए कटिबद्ध है. इसका यह भी अर्थ निकाला जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने तेल उत्पादक देशों को चेतावनी दी है कि यदि तेल की कीमतें बढ़ती रहीं, तो सौर ऊर्जा उसके मुकाबले कहीं सस्ती भी पड़ेगी और पर्यावरण भी बेहतर बनाया जा सकेगा. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच के कार्यकारी निदेशक फतीह बीरोल ने भी मोदी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि तेल की बढ़ती कीमतें उत्पादक देशों के हित में नहीं हैं.
साल 1973 से लेकर अब तक ‘तेल उत्पादक एवं निर्यातक’ (ओपेक) देश इकट्ठे होकर तेल की कीमतों को नियंत्रित करने का काम करते रहे हैं. इन देशों का नेतृत्व सामान्यतः सऊदी अरब करता है. ‘ओपेक’ की तरकीब यह है कि वह तेल की कीमतें कम होने की स्थिति में अपने सदस्य देशों को तेल की आपूर्ति कम करने का निर्देश देता है, इस तरह वे अपने एकाधिकारिक शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए तेल कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ा देते हैं.
लेकिन, पिछले लगभग छह वर्षों से ‘ओपेक’ देशों की यह तरकीब चल नहीं पा रही थी. कारण था कि अमेरिका ने अपने कच्चे तेल का उत्पादन दोगुना कर दिया है. ऐसे में तेल की कीमतें कम हो गयीं, लेकिन इस बार ओपेक देश तेल की आपूर्ति कम करके तेल की कीमतों को बढ़ाने में सफल नहीं हो सकेंगे.
इसलिए अन्य ‘ओपेक’ देशों के दबाव के बावजूद सऊदी अरब ने इस तरकीब को अपनाने से मना कर दिया. इसका असर यह हुआ कि दुनिया में तेल की कीमतें, जो 147 डाॅलर प्रति बैरल तक पहुंच गयी थीं, एक बार तो 30 डाॅलर प्रति बैरल से भी नीचे तक पहुंच गयीं.
पिछले कुछ समय से कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का कारण यह है कि ओपेक देशों ने वही पुरानी तकनीक फिर से अपनानी शुरू कर दी है. वर्ष 2016 से ओपेक देशों ने अपना दैनिक उत्पादक 17 लाख बैरल कम कर दिया. आज भी ओपेक देश दुनिया के 42 प्रतिशत तेल जरूरतों को पूरा करते हैं.
दुनिया में कई तेल उत्पादक एवं निर्यातक देश ओपेक के सदस्य नहीं हैं, उन्होंने भी इस स्कीम को अपनाकर अपना दैनिक उत्पादन कम कर दिया है. हालांकि, भारत दुनिया की कुल खपत का मात्र 4 प्रतिशत भी नहीं है, फिर भी मोदी की इस गुहार का महत्व है कि भारत ने इस गलत व्यवहार के खिलाफ आपत्ति दर्ज की है.
पिछले कुछ समय से अमेरिकी उत्पादन बढ़ने के दबाव में ओपेक द्वारा उत्पादन घटाकर कीमतें बढ़ाने की तरकीब पर थोड़ा अंकुश लगा था और कीमतें घट गयी थीं. आज जरूरत इस बात की है कि कूटनीतिक उपायों के माध्यम से भारत ‘ओपेक’ के इन कृत्यों पर अंकुश लगाये.
पिछली यूपीए सरकार में राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी के चलते ईरान से सस्ता तेल खरीदने के विकल्प पर विचार भी नहीं किया गया, वर्तमान मोदी सरकार ने भारी मात्रा में ईरान से तेल खरीदना शुरू किया है. यह तेल न केवल 2-3 डाॅलर प्रति बैरल सस्ता है, बल्कि इसके बिल के 40 प्रतिशत तक का भुगतान रुपयों में किया जा सकता है.
दुनियाभर के लोगों की ऊर्जा जरूरतों की भलीभांति पूर्ति और तमाम विकासशील देशों की विकास की आकांक्षाओं के मद्देनजर यह जरूरी है कि खाड़ी के अमीर देशों द्वारा उनकी एकाधिकारिक शक्तियों पर अंकुश लगे और विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति भी हो सके. माना जा रहा है कि जैसे-जैसे सौर एवं पवन ऊर्जा का विकास होता जायेगा, वैसे-वैसे पैट्रोलियम पदार्थों की मांग भी घटेगी.
तेल उत्पादक देशों के तेल भंडार तब केवल पैट्रोलियम पदार्थों को औद्योगिक कच्चे माल के रूप में ही उपयोग किये जा सकेंगे. ऐसे में उनकी कीमतें स्वतः ही घट जायेंगी. प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि तेल उत्पादक देशों द्वारा जिम्मेदारी से तेल कीमतों का निर्धारण उनके लिए भी महत्वपूर्ण है, वास्तव में सही प्रतीत होता है.