एयर इंडिया का विनिवेश
एयर इंडिया का विनिवेश सरकार के लिए गले की फांस बन गया है. न उगलते बन रहा है, न ही निगलते. पहले 49 फीसदी इक्विटी की पेशकश की गयी. कोई खरीदार नहीं आया. अब उसे बढ़ाकर 76 फीसदी कर दिया गया. अब भी कोई निजी संस्था हाथ लगाना नहीं चाह रही है.कभी भारत की शान […]
एयर इंडिया का विनिवेश सरकार के लिए गले की फांस बन गया है. न उगलते बन रहा है, न ही निगलते. पहले 49 फीसदी इक्विटी की पेशकश की गयी. कोई खरीदार नहीं आया.
अब उसे बढ़ाकर 76 फीसदी कर दिया गया. अब भी कोई निजी संस्था हाथ लगाना नहीं चाह रही है.कभी भारत की शान रहे इस उड़ान सेवा की हालत ऐसी जर्जर कैसे हो गयी? यह सब सरकार के आर्थिक सुधार एवं निजीकरण का नतीजा है.
राष्ट्रीय विमान सेवा को एक सोची समझी साजिश के तहत इनके फायदेमंद वाले रूट से हटाया गया. वहां निजी सेवाओं का विस्तार दिया गया. परिणाम हुआ कि आज वे सब के सब मुनाफे में है, एयर इंडिया घाटे में. यहीं नीति चलती रही तो वो दिन दूर नहीं जब, देश को पूरी तरह से निजी हाथों को सौंप दिया जायेगा.
जंग बहादुर सिंह, इमेल से