एक हजार और पांच सौ के पुराने नोट रद्द करने के बाद सरकार ने पांच सौ और दो हजार के नये नोट छापे, जिसमें दो हजार के नोट तुड़ाना झंझट का काम माना जाता है. यानी बाजार में नोटों का वजन भले ही नोटबंदी के पहले जितना हो गया हो, पर लिक्विडिटी वैसी नहीं हो पायी है.
काला धन जमा करने के लिहाज से दो हजार के नोटों का ज्यादा सुविधाजनक होना भी एक बड़ा सिरदर्द है. आजकल दो हजार के नोट चलन में कम दिखते हैं. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बैंकों में जमा की रफ्तार इधर काफी सुस्त पड़ गयी है.
वित्तीय वर्ष 2016-17 में इसमें 15.3 फीसदी बढ़ोतरी हुई थी जो 2017-18 में महज 6.66 फीसदी रह गयी. यानी वित्तीय प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत तो है ही, साथ में बैंकिंग के प्रति लोगों का पहले जैसा भरोसा कायम करने की चुनौती भी सरकार के सामने है.
डॉ हेमंत कुमार, इमेल से