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मुख्यमंत्री और हजारीबाग के लोगों से : डॉ सुभाष की याद को जिंदा रखने के लिए कुछ तो करिए

II अनुज कुमार सिन्हा II अपने शहर-राज्य आैर देश के नायकाें काे पहचानिए. उनके याेगदान काे याद कीजिए. उसे सम्मान दीजिए. उनकी याद काे जिंदा रखिए. इस समय यह सब बात हाे रही है डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय के बारे में. इतिहास पहले ही उनके साथ अन्याय कर चुका है. देश एक हाेनहार डॉक्टर (सुभाष मुखाेपाध्याय) […]

II अनुज कुमार सिन्हा II

अपने शहर-राज्य आैर देश के नायकाें काे पहचानिए. उनके याेगदान काे याद कीजिए. उसे सम्मान दीजिए. उनकी याद काे जिंदा रखिए. इस समय यह सब बात हाे रही है डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय के बारे में. इतिहास पहले ही उनके साथ अन्याय कर चुका है. देश एक हाेनहार डॉक्टर (सुभाष मुखाेपाध्याय) काे पहले ही खाे चुका है. अब बारी है उनके साथ न्याय करने की. यह काम हजारीबाग की जनता कर सकती है, झारखंड सरकार कर सकती है लेकिन इसके लिए जज्बा चाहिए, जुड़ाव चाहिए, जाे इनमें है.

फिर से याद कीजिए डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय काे. इतिहास में जाे गलती हुई थी, उसे सुधार लिया गया है. देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक काेई आैर नहीं बल्कि डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय ही थे, इसे मान्यता मिल चुकी है. उनका जन्म हजारीबाग यानी झारखंड में हुआ था. इस नाते वे झारखंड के बेटे थे, हैं आैर रहेंगे (इस पर झारखंड गर्व करे), उनकी कर्मभूमि भले ही बंगाल (काेलकाता) हाे. मेडिकल साइंस में इतना बड़ा काम (देश की पहली टेस्ट ट्यूब का जन्म दिलानेवाले) करनेवाले डॉ सुभाष काे इतना प्रताड़ित किया गया था कि उन्हाेंने अपनी जान दे दी थी. इतनी जानकारी सामने आ चुकी है कि डॉ सुभाष का जन्म हजारीबाग के बॉडम बाजार में हुआ था. दस्तावेज आैर डॉ सुभाष के करीबी मित्र सिर्फ इतना बता पाते हैं कि उनके नाना अनुपम मुखर्जी (मुखर्जी भवन) हजारीबाग में रहते थे. वहीं उनका जन्म हुआ था. इसके आगे की काेई जानकारी किसी काे नहीं है.

इतनी जानकारी हासिल हाेने के बाद यह जिम्मेवारी हजारीबाग के निवासियाें आैर सरकार की बनती है कि झारखंड के इस बेटे की याद में कुछ किया जाये. उनकी कर्मभूमि काेलकाता में डाक विभाग कवर प्रकाशित करने जा रहा है. खुशी की बात है पर ध्यान रहे कि झारखंड भी पीछे नहीं रहे. अगर झारखंड सरकार या मुख्यमंत्री चाह लें ताे झारखंड के इस बेटे की याद काे जिंदा किया जा सकता है. हाल तक लाेग यह जानते ही नहीं थे कि डॉ सुभाष झारखंड के थे.अब जब जान गये हैं ताे गर्व कीजिए इस डॉ सुभाष पर कि यह आपके शहर-राज्य से जुड़े हुए थे. देर भले हुई हाे लेकिन अब भी समय है कुछ करने का. जब जागाे, तब सवेरा.

डॉ सुभाष के मित्र (जाे 1978 में रिसर्च में उनके साथ थे) डॉ सुनित मुखर्जी काेलकाता में हैं. लगभग 90 साल के. उनसे फाेन पर बात हाे पायी. भावविह्वल डॉ सुमित ने सिर्फ इतना कहा-मेरे दाेस्त ने बहुत कष्ट झेला. अब उनकी याद में कुछ ताे बने, बड़ा सम्मान ताे मिले. डॉ सुमित मुखर्जी के इन वाक्याें काे आप (सरकार-जनता आैर प्रशासन) साकार कर सकते हैं. कैसे? डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय सिर्फ एक डॉक्टर ही नहीं थे. शाेध कार्य से जुड़े थे. झारखंड में सरकार के तीन-तीन मेडिकल कॉलेज हैं. अभी कई (हजारीबाग, पलामू, चाईबासा, दुमका आदि में) नये बननेवाले हैं. भवन ताे बन रहे हैं लेकिन बहुत जल्द हजारीबाग के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई आरंभ हाेगी.

सरकार चाहे ताे डॉ सुभाष की याद में हजारीबाग में खुलनेवाले मेडिकल कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखा जा सकता है. विदेशों में परंपरा है कि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों आदि के नाम किसी वैज्ञानिक या अपने नायकों के नाम पर रखे जाते हैं. भारत में अपवाद को छोड़ दिया जाये, तो अधिकांश संस्थानों के नाम राजनीतिज्ञों के नाम पर ही होते हैं. झारखंड में अलबर्ट एक्का, रामदयाल मुंडा जैसे नायकों के नाम पर कुछ संस्थान जरूर हैं, पर इस परंपरा को और बढ़ाने की जरूरत है. अगर यह संभव नहीं है (हालांकि मुख्यमंत्री या सरकार के लिए कुछ भी असंभव नहीं है), ताे हजारीबाग सदर अस्पताल या रिम्स के किसी वार्ड का नाम (हालांकि यह उनके सम्मान की तुलना में बहुत छाेटा हाेगा) डॉ सुभाष के नाम पर रखा जा सकता है या हजारीबाग सदर अस्पताल कैंपस में डॉ सुभाष की मूर्ति लगायी जा सकती है या उनके नाम पर हजारीबाग में काेई सड़क या चाैक का नाम रखा जा सकता है. नाम रखने में काेई खर्च भी नहीं है. चवन्नी भी नहीं. एक छाेटा सा प्रयास आनेवाली पीढ़ी काे प्रेरित करता रहेगा कि उनके शहर-राज्य से ऐसा व्यक्ति भी निकला जिसने इतिहास रचा. यह हाे सकता है राज्य स्तर पर. दूसरा काम भी संभव है.

हर साल केंद्र सरकार बेहतर काम करनेवाले दर्जनाें चिकित्सकाें काे पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण सम्मान देती है. डॉ सुभाष ऐसे सम्मान के हकदार हैं. पहले भी थे. अभी तक इस आेर किसी का ध्यान नहीं गया. अब अवसर आया है. यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह अपने राज्य के नायकाें की याद काे जिंदा रखने के लिए क्या-क्या कर सकती है. इसे पूरे अभियान में हजारीबाग के बुद्धिजीवी, जनप्रतिनिधि आैर सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं. डॉ सुभाष के जाे परिजन हजारीबाग में हैं (उन्हें खाेजना हाेगा), वे चुप नहीं बैठे, सामने आयें ताकि डॉ सुभाष की याद काे जिंदा रखने के लिए जाे कुछ भी किया जाये, उसमें उनकी भी भागीदारी हाे. उम्मीद बहुत ज्यादा है.

कई कारण हैं. हजारीबाग में उपायुक्त रविशंकर शुक्ल युवा हैं आैर सदर अस्पताल का काया पलटने में काफी सक्रिय रहे हैं. यह काम जिस विभाग के जिम्मे हैं, उसकी सचिव निधि खरे हैं, जाे ऐसे कामाें में रुचि लेती हैं. डॉ सुभाष की याद ताजा रहेगी, ऐसा विश्वास है क्याेंकि राज्य की कमान (यानी मुख्यमंत्री) जिस रघुवर दास के हाथ में है, वे अपने राज्य के नायकाें काे उचित सम्मान दिलाने में पीछे नहीं रहते. डॉ सुभाष काे राष्ट्रीय स्तर पर जाे भी सम्मान मिलेगा (अगर) ताे वह न सिर्फ हजारीबाग का, वहां की जनता का सम्मान हाेगा, बल्कि पूरे झारखंड का सम्मान हाेगा. इसलिए जाति, धर्म, समुदाय, दल से ऊपर उठ कर हजारीबाग की जनता-सरकार-प्रशासन काे इस काम में लगना चाहिए. प्रभात खबर परिवार ऐसे किसी भी सकारात्मक प्रयास में सदा खड़ा मिलेगा.

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