विश्व का सबसे बड़ा टी20 टूर्नामेंट आइपीएल निश्चित रूप से ग्लैमर और मनोरंजन जगत की एक बड़ी क्रांति बन कर उभरी है. क्रिकेट में हमारी लड़कियों ने भी दुनिया में बुलंदी के झंडे गाड़े हैं, मगर इन बेटियों के लिए आइपीएल का नहीं होना कई सवाल खड़े करता है. महिला सशक्तीकरण पर सियासत करने वालों ने ‘महिला आइपीएल’ की बात पर अब तक क्यों चुप्पी साध रखी है?
कई खेलों में मिली-जुली भागीदारी की संस्कृति है, तो क्रिकेट में ऐसी संभावनाएं तलाशने के प्रयास क्यों नहीं हुए? यह हमारी होनहार और तरक्की पसंद बेटियों के साथ खुला भेद-भाव नहीं तो और क्या है? आधी आबादी की हिस्सेदारी के बिना ‘खेलो इंडिया’ कैसा होगा? नजरिया और नीयत बदले बगैर खोखले नारों से तरक्की की बात बेमानी है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची