विपक्ष की मुद्दाहीनता
विपक्ष की मुद्दाहीनता राजनीति को भटकाकर सरकार को काम नहीं करने देने की जिद पर अड़ी है. अभी-अभी जस्टिस लोया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पर्टियां बौखलायी लगती हैं. जस्टिस लोया के पुत्र ने जब इसे स्वाभाविक मौत माना है, तो मात्र उससे भाजपा अध्यक्ष के एक अंश तक जुड़े होने के […]
विपक्ष की मुद्दाहीनता राजनीति को भटकाकर सरकार को काम नहीं करने देने की जिद पर अड़ी है. अभी-अभी जस्टिस लोया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पर्टियां बौखलायी लगती हैं. जस्टिस लोया के पुत्र ने जब इसे स्वाभाविक मौत माना है, तो मात्र उससे भाजपा अध्यक्ष के एक अंश तक जुड़े होने के कारण वे इसे छोड़ना नहीं चाहतीं और वर्तमान सीजेआइ पर महाभियोग लगाने तक को प्रयत्नशील हैं.
और कुछ नहीं तो लोकसभा चुनाव तक यह मुद्दा सरकार पर अविश्वास का माहौल पैदा करता रहे, यह उनका लक्ष्य है. न्यायपालिका के अधिकारों पर अगर इतना अविश्वास किया जाये, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अशोभनीय है.
अभी जिन मुद्दों पर सियासत की जा रही है, वे नये मुद्दे नहीं हैं. कठुआ केस, उन्नाव केस आदि को राजनीति से जोड़ देना लज्जाजनक है. इन सब मामलों में छोटी बच्चियों पर किये गये अत्याचार मन में राजनीतिक हथकंडों का भी संदेह पैदा करते हैं. दलितों की राजनीति भी अब मुद्दाहीनता को ही प्रदर्शित करता प्रतीत होता है.
आशा सहाय, इमेल से