कैशलेस में ही आनंद है

II आलोक पुराणिक II वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com हाल में पब्लिक एटीएम में कैश ना होने से परेशान हुई. वैसे कैश हो तो भी परेशान होती है. कैश से जुड़े तमाम मसलों, सवालों पर एक वृहद प्रश्नोत्तरी जनहित और धनहित में जारी की गयी है, वह इस प्रकार है- सवाल: खबरें आयी थीं कि कई जगह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2018 5:02 AM

II आलोक पुराणिक II

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

हाल में पब्लिक एटीएम में कैश ना होने से परेशान हुई. वैसे कैश हो तो भी परेशान होती है. कैश से जुड़े तमाम मसलों, सवालों पर एक वृहद प्रश्नोत्तरी जनहित और धनहित में जारी की गयी है, वह इस प्रकार है-

सवाल: खबरें आयी थीं कि कई जगह एटीएम में कैश नहीं है. कई जगह कैश था. तो मसला असल में था क्या?

जवाब: देखिए कैश ब्रह्म है. अल्टीमेट परम सत्य, ब्रह्म का मामला ऐसा ही है, कई लोग कहते हैं कि है नहीं है. कुछ को दर्शन हो जाते हैं, कुछ को नहीं होते. पहले ऐसी बातें ब्रह्म के बारे में कही जाती थीं. अब कैश के बारे में भी कही जाने लगी हैं, यानी फिर पुष्टि होती है कि कैश ही ब्रह्म है.

सवाल: कैश न हो तो पब्लिक परेशान रहती है. कैश हो तो परेशान रहती है. पब्लिक हमेशा परेशान क्यों रहती है?

जवाब: कैश न हो तो पब्लिक कहती है कि कैश नहीं है. कैश हो, तो पब्लिक कहती है कि लूट कर ले गये राहजन. डकैत छीन कर ले गये. पब्लिक का काम परेशान रहना है. एटीएम से कैश न निकले, तो सुरक्षित रहता है.

एटीएम से कैश निकल आये, तो फिर उसकी सुरक्षा का कोई उपाय नहीं है. तरह तरह की सेल के आॅफरों से लेकर तरह-तरह के राहजन उस पर घात लगाये रहते हैं. अत: जनहित में यही है कि एटीएम से कैश कतई न निकले.

सवाल: पर कैश न होने की वजह से कई नौजवानों का वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ गया. शादी के वक्त गले में दो हजार के नोटों की माला पहनकर दूल्हा जाता है. अगर नोटों की माला न बन पाये, तो विवाह ही संभव नहीं है. अत: सरकार से अनुरोध है कि कम-से-कम नोटों की माला के लिए आवश्यक दो हजार के नोट तो हर विवाहार्थी को दिलवाये. यह कैसे हो सकता है?

जवाब: जी विवाह रकम पर टिका होता है. बंदे को विवाह से पूर्व नोटों की माला इसलिए पहनायी जाती है, ताकि वह संदेश दे सके कि मेरे पास ठीक-ठाक रकम है, मैं शादी का निर्वाह कर लूंगा. पर बदलती तकनीक के दौर में क्रेडिट कार्डों की माला पहनायी जानी चाहिए.

क्योंकि आइटम इतने महंगे हो चले हैं कि कैश गिनने में दूल्हे की जान निकल लेगी. अब जैसे किसी को एप्पल का एक लाख रुपये से ऊपर की कीमत का मोबाइल फोन खरीदना हो, तो दिनभर नोट गिनता रहेगा. क्रेडिट कार्ड से एक झटके में रकम इधर की उधर. धीमे-धीमे नोट गिनता है बंदा, तो अक्ल भी आ सकती है कि अबे ये आइटम एक लाख का है भी कि नहीं. रकम कुछ ज्यादा तो नहीं ली जा रही है.

ऐसे सवाल खरीदार के मन में कौंधने लगें, तो कंपनियों को खतरा हो जाता है. इसलिए कंपनियां चाहती हैं कि कैश हो ही नहीं, सिर्फ क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल हो.

सवाल: इस तरह तो बंदा बहुत महंगे आइटम महंगी उधारी पर खरीदेगा?

जवाब: वही तो सब कंपनियां चाहती हैं मूरख. कैशलेस में ही सबका आनंद है.

Next Article

Exit mobile version