और सुधार जरूरी

बच्चियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर क्रुद्ध और क्षुब्ध राष्ट्र की भावनाओं के अनुरूप केंद्र सरकार ने अहम कानूनी सुधारों का फैसला लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की विशेष बैठक में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा तथा महिलाओं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2018 5:03 AM

बच्चियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर क्रुद्ध और क्षुब्ध राष्ट्र की भावनाओं के अनुरूप केंद्र सरकार ने अहम कानूनी सुधारों का फैसला लिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की विशेष बैठक में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा तथा महिलाओं और 16 से कम उम्र की किशोरियों से दुष्कर्म के अपराधियों को अधिकतम दंड के प्रावधान को मंजूरी दी गयी है. नये कानूनी सुधार में पुलिस को ऐसे मामलों की जांच दो महीने के भीतर और अदालती निबटारा छह महीने के भीतर करने का भी प्रावधान शामिल है.

वर्ष 2012 के निर्भया मामले के बाद न्यायाधीश जेएस वर्मा की अगुवाई में बनी समिति के सुझावों के आधार पर कुछ खास सुधार हुए थे, जिनमें बलात्कार के मामलों की त्वरित सुनवाई करना प्रमुख था. लेकिन बलात्कार की घटनाओं की बड़ी संख्या को निबटाने में हमारा तंत्र कामयाब न हुआ. वर्ष 2016 में करीब 40 हजार मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 40 फीसदी पीड़िता बच्चियां थीं.

आंकड़े बताते हैं कि उस साल सुनवाई के लिए लाये गये बच्चों से संबंधित मामलों में से मात्र 28.2 फीसदी में ही दोषियों को सजा हो सकी थी. जांच करने और अदालत के सामने आरोपियों की पेशी का जिम्मा पुलिस को है. देशभर में पुलिसकर्मियों के लगभग पांच लाख पद खाली हैं. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भी भर्ती की गति बहुत धीमी है.

अनेक जानकारों की राय है कि पुलिस प्रणाली में निगरानी और जांच के लिए अलग-अलग विभाग बनाये जाने चाहिए. अदालतों को भी अधिक जजों और संसाधनों की दरकार है. देश की विभिन्न अदालतों में 16 लाख से अधिक ऐसे मामले हैं, जो 10 साल से अधिक समय से लंबित है. जिला अदालतों में चल रहे मुकदमों में से आधे दो सालों से ज्यादा वक्त से चल रहे हैं. पुलिस और न्यायिक प्रणाली में समुचित सुधार के बिना त्वरित सुनवाई की मंशा हकीकत नहीं बन सकती है.

सिर्फ तुरंत जांच और मुकदमा पूरी करने पर ही जोर देने की कोशिश में न्याय के आदर्शों के साथ उसकी व्यावहारिकता की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध होनेवाले अपराधों को केवल कानून एवं व्यवस्था से जोड़कर नहीं देखा सकता है. समाज और राजनीति की चेतना एवं संवेदना के अभाव पर भी ध्यान देना आवश्यक है. बलात्कारी कहीं और से नहीं आते, इसी समाज में पैदा होते हैं.

इस संदर्भ में एक सच यह भी है कि बलात्कार के मामलों के अधिकतर आरोपी पीड़िता के परिचित, रिश्तेदार या सहकर्मी होते हैं. पूर्वाग्रहों के कारण अनेक मामलों की शिकायत भी नहीं होती. इस स्थिति में बदलाव के लिए व्यापक जागरूकता पैदा करने की मुहिम चलायी जानी चाहिए. अपराध के लिए दंड सुनिश्चित करना जरूरी है, पर साथ में यह प्रयास भी हो कि अपराध और अपराधी को शह देनेवाली स्थितियों को बदला जाये.

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