चीन का रुख समझें
एक साथ दो केंद्रीय मंत्री चीन के दौरे पर हों, तो फिर कयास लगाये जा सकते हैं कि दोनों देशों के रिश्ते में जरूर ही कुछ महत्वपूर्ण होने जा रहा है. यों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए गये हैं. सो औपचारिक […]
एक साथ दो केंद्रीय मंत्री चीन के दौरे पर हों, तो फिर कयास लगाये जा सकते हैं कि दोनों देशों के रिश्ते में जरूर ही कुछ महत्वपूर्ण होने जा रहा है. यों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए गये हैं.
सो औपचारिक तौर पर कहा जा सकता है कि दोनों मंत्रियों के चीन दौरे के महत्व को द्विपक्षीय (चीन-भारत संबंध) नहीं, बल्कि बहुपक्षीय जमीन पर देखा जाना चाहिए. बात पहली नजर में ठीक लगती है. एससीओ की स्थापना साल 2001 में हुई और इस संगठन का मकसद सदस्य देशों के बीच आर्थिक और सैन्य सहयोग बढ़ाना तथा मध्य एशियाई क्षेत्र में आतंकवाद का सामना करने के लिए एकजुट प्रयास करना है.
संगठन में चीन के अलावे सदस्य देश के रूप में रूस, कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजीकिस्तान, किर्गिजस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं. लेकिन, दोनों केंद्रीय मंत्रियों के चीन दौरे को एससीओ के मकसद के दायरे के भीतर सीमित करना ठीक नहीं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत के लिए चीन जा रहे हैं. सुषमा स्वराज के चीन दौरे को भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति की प्रस्तावित भेंट की जमीनी तैयारी के रूप में भी देखा जाना चाहिए. चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बयान के भी यही संकेत हैं.
वांग यी ने शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के बीच होनेवाली बातचीत को ‘दोनों देशों के रिश्तों के बीच नया मोड़ लानेवाला’ करार दिया है. भेंट से पहले चीन ने अपने रुख में बदलाव के भी संकेत दिये हैं. ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़े आंकड़े भारत के साथ साझा करने और कैलाश-मानसरोवर यात्रा नाथू-ला दर्रे के रास्ते फिर से शुरू करने पर चीन राजी दिख रहा है.
इस बदली हुई पृष्ठभूमि में बहुत मुमकिन है पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत में डोकलाम में जारी चीन के निर्माण कार्य, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाली, चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना, एनएसजी में भारत की सदस्यता और भारत में चीन के निवेश जैसे कई मसले उठें.
एनएसजी में भारत की सदस्यता के समर्थन के एवज में चीन चाहेगा कि भारत सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के प्रति सहयोगी रुख अपनाये और चीन-नेपाल-भारत के बीच प्रस्तावित आर्थिक गलियारे (सीएनआइइसी) का मसला भी शी जिनपिंग उठा सकते हैं.
लेकिन, सीएनआइइसी या फिर सीपीइसी पर कोई भी वादा करने से पहले भारत को ध्यान रखना होगा कि चीन-पाकिस्तान गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर में कई जगहों पर भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है और सीएनआइइसी के जरिये चीन नेपाल की तराई तक अपनी पैठ बनाना चाहता है.
उसका इरादा पाकिस्तान की तरह पूर्वोत्तर भारत को भी अपनी कंपनियों और कामगारों से पाट देने का है. सो, चीन के साथ रिश्तों को नया रूप देते वक्त भारत के लिए फूंक-फूंककर कदम रखने की जरूरत है.