महिलाओं के खिलाफ अपराध

कठुआ और उन्नाव की घटना के बाद जनता के गुस्से को समझते हुए सरकार ने अध्यादेश लाकर कानून को और सख्त बनाया है. हमारा समाज बिल्कुल टूट रहा है. असंवेदनशील, स्वार्थी, लालची व असंयमित हो चुका है. हमारे मूल्य खत्म हो रहे हैं. 90 के दशक तक की पीढ़ी जानती होगी कि कई सारे ‘अपराध’ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 26, 2018 7:07 AM
कठुआ और उन्नाव की घटना के बाद जनता के गुस्से को समझते हुए सरकार ने अध्यादेश लाकर कानून को और सख्त बनाया है. हमारा समाज बिल्कुल टूट रहा है. असंवेदनशील, स्वार्थी, लालची व असंयमित हो चुका है. हमारे मूल्य खत्म हो रहे हैं.
90 के दशक तक की पीढ़ी जानती होगी कि कई सारे ‘अपराध’ महज पड़ोसियों या रिश्तेदारों के भय के कारण ही नहीं हो पाते थे. उस समय भी बहुत से स्कूली बच्चे छेड़खानी, व्यभिचार करने की सोचते थे, लेकिन ‘किसी ने देख लिया तो पिटाई होगी’- इस एक डर ने बहुतों को रोक दिया. लेकिन आज हम अपने बच्चों को किसी का लिहाज करना सिखाते ही नहीं.
किशोरों में ‘पाप लगेगा’ या ‘आंटी मारेगी’ जैसी कोमल बातों ने ही बहुत से बुरे कामों को रोक दिया जाता था जबकि आज उसे ‘पॉक्सो’ ऐक्ट भी नहीं रोक पा रहा. इसे रोकने के लिए सख्त कानून के अलावा मीडिया और समाज को खुद में सख्त बदलाव की जरूरत है.
राजन सिंह, जमशेदपुर

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