बिहार के कारण नहीं पिछड़ा भारत

II डॉ शैबाल गुप्ता II सदस्य सचिव, एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट, (आद्री), पटना shaibalgupta@yahoo.co.uk पिछले दिनों नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने एक बयान दिया- ‘बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के कारण भारत पिछड़ा बना हुआ है.’ इस बयान में कोई सच्चाई नहीं है और न ही इसका कोई ठोस आधार ही है. इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 26, 2018 7:16 AM
II डॉ शैबाल गुप्ता II
सदस्य सचिव, एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट, (आद्री), पटना
shaibalgupta@yahoo.co.uk
पिछले दिनों नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने एक बयान दिया- ‘बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के कारण भारत पिछड़ा बना हुआ है.’ इस बयान में कोई सच्चाई नहीं है और न ही इसका कोई ठोस आधार ही है. इस बयान को दो ढंग से लिया जा सकता है.
एक : शायद अमिताभ कांत भारत के अल्पविकसित होने के क्रम-काल को नहीं समझ पाये, इसलिए उनको लगा कि बिहार और ‘हिंदी हार्ट लैंड’ (हिंदी पट्टी) ही भारत के अल्पविकसित होने के मुख्य कारण हैं. यहां यह बात बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है कि अगर अमिताभ जी की यह बात सही है, तो शायद वे नीति आयोग से इन राज्यों के विशेष विकास के लिए कोशिश करेंगे. इन राज्यों के प्रति अपनी जिम्मेदारी उन्हें निभानी चाहिए.
दो : उनके बयान को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है कि भारत का संभ्रांत वर्ग (इलीट क्लास) बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के राज्यों को तथ्यपरक और सटीक ढंग से नहीं देखता है. वह पूरा वर्ग यही समझता है कि इन क्षेत्रों के कारण ही भारत की छवि खराब हो रही है. इसी मानसिक क्षितिज का एक उदाहरण है नीति आयोग के सीईओ का बयान.
बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के राज्यों के पिछड़नेपन के क्या ठोस कारण हैं, इस बात को समझे बिना हम यह नहीं समझ सकते कि सच्चाई क्या है.
दरअसल, बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के पिछड़ेपन का कारण केवल आजादी के बाद के काल में नहीं देखा जा सकता है, बल्कि भारत में आजादी के पहले का जो विकास का मॉडल था, उसके आधार पर भी देखना होगा. दरअसल, आजादी के पहले इन क्षेत्रों में केवल जमींदारी प्रथा हावी थी और यहां रजवाड़ों का भी बोलबाला था.
इस तथ्य पर ध्यान देना जरूरी है कि आजादी के पहले मद्रास और बांबे प्रेसिडेंसी का जो घाटा था, वह बंगाल प्रेसिडेंसी से पूरा किया जाता था. जहां-जहां जमींदारी प्रथा हावी थी, खासतौर पर बिहार में, वहां-वहां विकास नहीं हो सका, क्योंकि वहां टैक्स कलेक्शन फिक्स था, जिसके कारण समाज में सरकारी निवेश (पब्लिक इन्वेस्टमेंट) नहीं हो सका. इसका नुकसान यह हुआ कि सामूहिक रूप से समाज में समान विकास बाधित होता रहा और कुछ संभ्रांत लोगों का ही विकास होता गया.
वहीं दूसरी बात यह भी है कि आजादी के पहले मद्रास और बांबे प्रेसिडेंसी में सोशल सेक्टर का खर्च (एक्सपेंडीचर)- चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र में- हमेशा ही ज्यादा रहा करता था. इस कारण उन क्षेत्रों का सामाजिक और आर्थिक विकास हुआ, लेकिन बाकी उत्तर के क्षेत्र पिछड़ते गये.
आजादी के बाद भी बिहार और हिंदी हार्ट लैंड वाले राज्यों को प्लानिंग कमीशन (योजना आयोग) और फिनांस कमीशन (वित्त आयोग), इन दोनों से हमेशा प्रतिव्यक्ति न्यूनतम खर्च ही मिलता रहा.
इसलिए यह पूरा क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार रहा. इसका असर यह हुआ कि ये धीरे-धीरे आर्थिक रूप से कमजोर होते चले गये. वहीं दूसरी बात यह भी है कि पंडित नेहरू के शासनकाल में केंद्रीय उद्योग मंत्री रहे टीटी कृष्णामाचारी ने माल भाड़ा का सामान्यीकरण (फ्रेट इक्वलाइजेशन) कर दिया था.
इसका नुकसान यह हुआ कि खनन क्षेत्र वाले राज्यों के लिए आर्थिक त्रासदी की स्थिति हो गयी. अगर यह देखा जाये, तो भारत का औद्योगिकरण मुख्यत: दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों का ही हुआ. और यह भी मूलत: बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के चलते हुआ, क्योंकि इन्हीं क्षेत्रों में सस्ता श्रम मौजूद था. किसी भी देश में औद्योगिकरण के लिए श्रम बहुत मायने रखता है, ऐसे में अगर सस्ता श्रम मिल जाये, तो फिर क्या कहने.
आजादी के बरसों बाद जब उदारीकरण का दौर आया, तब बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के राज्यों का काफी विकास हुआ. ऐसा नहीं है कि ये राज्य अपने पिछड़ेपन के साथ ही आगे बढ़ रहे थे, बल्कि अपनी कोशिशों से विकास भी कर रहे थे. उदारीकरण के बाद से ही इन राज्यों में सोशल सेक्टर में खर्च भी काफी बढ़ा है. हालांकि, अब भी स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति खर्च कम है. इसीलिए मेरा मानना है कि जब तक इन राज्यों को अलग से विशेष पैकेज देकर विकसित करने की कोशिश नहीं की जायेगी, तब तक ये राज्य राष्ट्रीय औसत के ऊपर नहीं आ पायेंगे.
बिहार और हिंदी हार्ट लैंड के राज्य लगातार प्रयास करते रहे हैं, इस बात से किसी को इनकार नहीं होना चाहिए. इस तथ्य को बिहार के उदाहरण से समझते हैं.
पिछले 15 साल से बिहार करीब-करीब 10 प्रतिशत की दर से जीडीपी ग्रोथ करता रहा है. इसके साथ ही दूसरे क्षेत्रों में भी विकास हुआ है और अब भी लगातार हो रहा है. पहले अच्छी सड़कें नहीं थीं, पुल नहीं थे, और बेहतर संस्थाएं नहीं थीं, लेकिन बीते दशकों में इन सब पर बहुत काम हुआ. बिहार में शिक्षा पर खर्च उसके बजट में सबसे ज्यादा है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह सबसे कम है.
इसलिए बिहार में और हिंदी हार्ट लैंड के नजरिये से देखें, तो इन राज्यों ने खुद को विकसित करने में कोई कमी नहीं रखी और वे लगातार खुद को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं.
जहां तक दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के ज्यादा समृद्ध होने की बात है, तो वे शुरू से ही लगातार विकास करते रहे हैं, इसलिए वे उनकी वित्तीय शक्ति (फिनांशियल मसल) पूरे भारत में बढ़ती गयी थी और आज वे आर्थिक रूप से ज्यादा समृद्ध हैं.
महाराष्ट्र में मार्केट बहुत अच्छा है, इसलिए उसकी अर्थव्यवस्था भी अच्छी है. यह कैसे संभव हो पाया? दरअसल, अच्छा मार्केट होने की वजह से महाराष्ट्र को लेकर नेशनल पॉलिसी और केंद्र का सकारात्मक साथ मिलता आया है, इसी वजह से महाराष्ट्र का विकास संभव हुआ है.
एक आंकड़ा तो यह कहता है कि आगामी 2024 तक महाराष्ट्र की इकोनॉमी एक ट्रिलियन डॉलर हो जायेगी. लेकिन, बिहार के लिए ऐसा सोच पाना अभी संभव नहीं है, क्योंकि बिहार में मार्केट कम है. यह तभी संभव होगा, जब केंद्र से बिहार को या इसके जैसे राज्यों को आर्थिक सहयोग मिले.
इस पूरे संदर्भ में अमिताभ कांत के बयान का खंडन करना चाहिए, क्योंकि उनका बयान असहिष्णु वक्तव्य है. इस गैरजिम्मेदाराना बयान के लिए उन्हें नीति आयोग के सीईओ जैसे संवेदनशील पद से हटा देना चाहिए.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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