औचक निरीक्षण के बाद बदलाव भी दिखे

झारखंड के प्रभारी मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती लगातार क्षेत्रों में जा कर औचक निरीक्षण कर रहे हैं. जब से उन्होंने प्रभार लिया, निरीक्षण उनकी प्राथमिकता सूची में है. बुधवार को जब वह कामडारा अस्पताल पहुंचे, तो पाया कि सिलिंडर में आक्सीजन है ही नहीं, चिकित्सक गायब थे. ये झारखंड के हालात बताते हैं. राज्य बनने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 16, 2014 3:50 AM

झारखंड के प्रभारी मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती लगातार क्षेत्रों में जा कर औचक निरीक्षण कर रहे हैं. जब से उन्होंने प्रभार लिया, निरीक्षण उनकी प्राथमिकता सूची में है. बुधवार को जब वह कामडारा अस्पताल पहुंचे, तो पाया कि सिलिंडर में आक्सीजन है ही नहीं, चिकित्सक गायब थे. ये झारखंड के हालात बताते हैं. राज्य बनने के बाद बहुत कम अवसर आये हैं जब बड़े पदों पर बैठे किसी अधिकारी ने रात में जा कर दूरदराज इलाकों में निरीक्षण किया हो.

मुख्य सचिव के ऐसे प्रयासों की सराहना होनी चाहिए. लेकिन, ये निरीक्षण सार्थक तभी होंगे जब दोषियों पर कार्रवाई हो, व्यवस्था में सुधार हो. अगर निरीक्षण के बाद हालात नहीं बदलते, तो लोगों का विश्वास उठ जायेगा. ऐसा निरीक्षण कभी केबी सक्सेना (आइएएस अफसर) किया करते हैं. उनकी कार के ड्राइवर को भी पता नहीं होता था कि कहां जाना है. इसलिए अफसरों को पूर्व सूचना नहीं मिलती थी. अभी छापामारी/औचक निरीक्षण की खबर पहले ही लग जाती है जिससे सभी सतर्क हो जाते हैं. यह व्यवस्था की गड़बड़ी है. स्वास्थ्य सेवा जरूरी सेवा है जिसमें सुधार आना ही चाहिए. साथ ही अन्य विभागों में जो गड़बड़ियां हैं, उन्हें भी पकड़ना होगा. अब रैन बसेरे में बारात ठहरती हो और गरीब बाहर सड़क पर सो रहे हों, तो स्थिति का अंदाजा लगा लीजिए.

उन अफसरों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिनका काम यह देखना है कि सब कुछ ठीक चल रहा है या नहीं. यह आसान नहीं है. एक बार अफसरों पर कार्रवाई करने लगे तो अफसरों का एक बड़ा तबका अपने राजनीतिक आकाओं के बल पर ऐसा माहौल बना देगा जिससे मुख्य सचिव के लिए काम करना कठिन हो जायेगा. सजल चक्रवर्ती की छवि एक जुनूनी अफसर की है. वे झारखंड की नब्ज पहचानते हैं. वे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को भी चेक करें. पता चलेगा कि कैसे पुलिस वसूली करती है और ट्रैफिक नियमों को तोड़नेवालों को छ़ोड़ देती है. विद्यालयों में शिक्षक नहीं रहते. ऐसे विद्यालयों का औचक निरीक्षण हो, तो सच्चई सामने आ जायेगी. राज्य में नयी सड़कें व पुल एक साल के अंदर टूट जाते हैं. मुख्य सचिव अगर खुद जाकर गड़बड़ी पकड़ने लगें, तो किस इंजीनियर-ठेकेदार की हिम्मत होगी कि वह गड़बड़ी करे? यह कठिन है, पर असंभव नहीं.

Next Article

Exit mobile version