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बेहतर होते रिश्ते

बदलती वैश्विक व्यवस्था में चीन और भारत हाशिये से निकलकर केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. बीते सप्ताह राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात इस तथ्य का स्पष्ट रेखांकन है. आपसी विवादों को परे रखकर आत्मीयता और खुलेपन से हुई दोनों नेताओं की बैठक वर्तमान समय की बड़ी कूटनीतिक घटना है. […]

बदलती वैश्विक व्यवस्था में चीन और भारत हाशिये से निकलकर केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. बीते सप्ताह राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात इस तथ्य का स्पष्ट रेखांकन है.
आपसी विवादों को परे रखकर आत्मीयता और खुलेपन से हुई दोनों नेताओं की बैठक वर्तमान समय की बड़ी कूटनीतिक घटना है. दो दशक पहले दुनिया की अर्थव्यवस्था में चीन का हिस्सा चार फीसदी से कम था, पर आज यह 15 फीसदी के स्तर पर है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है और अनुमान है कि अगले एक दशक के भीतर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जायेगा. वर्ष 1990 और 2011 के बीच 45 करोड़ चीनी गरीबी से उबरे, तो 1994 से 2012 के बीच भारत में गरीबी दर में 50 फीसदी की कमी आयी और 13 करोड़ लोग निर्धनता के चंगुल से बाहर आये. भारत और चीन बड़ी आबादी के देश हैं तथा आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर उन्हें अभी बहुत कुछ हासिल करना है. द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक मसलों में साझेदारी के बावजूद आपसी और क्षेत्रीय मामलों को लेकर दोनों देशों के संबंधों में असहजता भी है.
ऐसे में वुहान में दोनों नेताओं की बैठक का महत्व बहुत बढ़ जाता है. राष्ट्रपति जिनपिंग ने उचित ही कहा है कि परस्पर विश्वास ही भारत-चीन संबंधों के सुव्यवस्थित विकास का आधार है. बीते कुछ सालों में दोनों नेता एक-दूसरे के मेहमान हुए हैं और कई अवसरों पर उनकी मुलाकातें भी हुई हैं.
दोनों देशों के मंत्रियों और अधिकारियों का आने-जाने का सिलसिला लगातार जारी है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी चीनी नेता की इस बात से सहमति जतायी है कि चीन और भारत के मजबूत रिश्ते वैश्विक राजनीति की स्थिरता के लिए भी बहुत जरूरी हैं.
संरक्षणवाद, आतंक, युद्ध, हिंसा और बड़े देशों की स्वार्थी तनातनी से वैश्वीकरण, मुक्त व्यापार और संतुलित अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. चीन और भारत समेत सभी विकासशील और अविकसित देशों की आकांक्षाओं के रास्ते में ये चुनौतियां बाधक हैं. संतोष की बात है कि इन समस्याओं पर दोनों नेता समान राय रखते हैं और इनके समाधान के लिए सहयोग की इच्छा रखते हैं.
पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के अन्य देशों तथा हिंद महासागर में चीनी प्रभाव के आक्रामक विस्तार भारतीय हितों के लिए नुकसानदेह हैं. भारत ने समय-समय पर चीन को भी अपनी चिंताओं से अवगत कराया है. यह भारतीय कूटनीति और उसके संयम का ही नतीजा है कि चीन भी आपसी तनावों को बढ़ाने की निरर्थकता को समझ गया है.
आपसी भरोसा मजबूत करने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के राष्ट्रपति जिनपिंग के आग्रह में ऐसे संकेत पढ़े जा सकते हैं. एक मशहूर कहावत है कि आप अपने दोस्त चुन सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं. इस बात को समझते हुए दोनों नेता दोस्ती की नयी इबारत लिखने की राह पर हैं.

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