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तबाही की होड़

दुनियाभर में सैन्य साजो-सामान खरीदने और ताकत बढ़ाने का सिलसिला बेहद चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है. साल 2017 में पूरे विश्व में सैनिक मदों पर पौने दो ट्रिलियन डॉलर खर्च किये गये. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, सैन्य खर्च के लिहाज से शीर्ष के पांच देशों में भारत शामिल […]

दुनियाभर में सैन्य साजो-सामान खरीदने और ताकत बढ़ाने का सिलसिला बेहद चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है. साल 2017 में पूरे विश्व में सैनिक मदों पर पौने दो ट्रिलियन डॉलर खर्च किये गये. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, सैन्य खर्च के लिहाज से शीर्ष के पांच देशों में भारत शामिल है और 2017 में इसका खर्च 63.9 बिलियन डॉलर रहा है, जो कि 2016 की अपेक्षा 5.5 फीसदी ज्यादा है. चूंकि भारत आंतरिक तौर पर जरूरी सैन्य सामानों का उत्पादन समुचित मात्रा में नहीं कर रहा है, इसलिए आयात पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक है.

वैश्विक स्तर पर देखें, तो अमेरिका और अन्य प्रमुख पश्चिमी देश अभी भी बहुत खर्च कर रहे हैं, पर चीन, भारत, जापान और अरब देशों का बजट लगातार बढ़ रहा है. वर्तमान खर्च कुल वैश्विक घरेलू उत्पादन का 2.2 फीसदी है. यह होड़ तनावग्रस्त भू-राजनीतिक परिस्थितियों और हिंसात्मक गतिविधियों की आशंका को इंगित करती है. मौजूदा माहौल संघर्षों को समाप्त कर शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए निराशाजनक है.

वर्ष 2012 से 2016 के बीच सैन्य खर्चों में वैश्विक कमी आयी थी, पर हालात फिर से बिगड़ने लगे हैं. एशिया में सेना पर चीन सबसे अधिक खर्च करता है. उसके 228 बिलियन डॉलर के खर्च के कारण भारत पर भी दबाव है. एक कारक हमारा दूसरा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी है.

हम सैन्य खर्च बढ़ा तो रहे हैं, पर इससे सेना को अत्याधुनिक साजो-सामान अपेक्षित रूप से नहीं उपलब्ध हो पा रहे हैं, क्योंकि वेतन और पेंशन जैसे मदों में ही ज्यादा बजट खप जा रहा है. कुल बजट का मात्र 14 फीसदी ही आधुनिकीकरण पर खर्च होता है. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश हथियारों के कारोबार से अपने खर्च की भरपाई कर लेते हैं और चीन भी अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश को अपने प्रभाव-क्षेत्र में विस्तार के प्रयास का हिस्सा मानता है.

यह स्थिति भारत जैसे देशों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें विकास के लिए भी धन की जरूरत है. हिंसक संघर्ष, गरीबी, बीमारी, जलवायु परिवर्तन जैसी भयावह समस्याएं हैं. ऐसे में सैन्य तैयारियों में धन और ऊर्जा का निवेश पूरी मानवता के लिए नुकसानदेह है.

कवि प्रदीप ने दशकों पहले देशवासियों को एक गीत में आगाह किया था- एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनिया/बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया/तुम हर कदम उठाना जरा देख भाल के… आज यह संदेश न सिर्फ भारत या उसके पड़ोसी देशों के लिए मानीखेज है, बल्कि समूची दुनिया को इस पर गौर करना चाहिए, खासकर हथियारों का कारोबार कर मुनाफा कमानेवाले ताकतवर देशों को, जिनके स्वार्थों की वजह से विभिन्न देशों और इलाकों में तल्खी एवं तनाव का माहौल बना हुआ है. यह समझा जाना चाहिए कि हथियारों की होड़ कोई रास्ता या उपाय नहीं, बल्कि एक खतरनाक जाल में फंसते जाने का मामला है.

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