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बैंकिंग व्यवस्था में सुधार जरूरी

II अश्विनी महाजन II एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan1@gmail.com पिछले दिनों खबर आयी कि बीते पांच साल के दौरान भारत में 23 हजार बैंक धोखाधड़ियां हुईं, जिसके चलते एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि फंस गयी है. निश्चित रूप से इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और बैंकिंग व्यवस्था पर तो यह असर दिख […]

II अश्विनी महाजन II

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan1@gmail.com

पिछले दिनों खबर आयी कि बीते पांच साल के दौरान भारत में 23 हजार बैंक धोखाधड़ियां हुईं, जिसके चलते एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि फंस गयी है. निश्चित रूप से इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और बैंकिंग व्यवस्था पर तो यह असर दिख भी रहा है.

आज बैंक ही वित्तीय मध्यस्थता का स्रोत हैं. ऐसे लोग जिनके पास अतिरिक्त पैसा होता है, चाहे वे गृहस्थ हों, संस्थाएं हों, व्यवसायी हों या आमजन, अपना धन बैंक में रखते हैं, जिन पर उनको ब्याज मिलता है.

वहीं कुछ व्यक्ति, संस्थान या व्यवसायी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें उधार की जरूरत होती है, ताकि वे अपनी योजनाओं को आगे बढ़ा सकें. ऐसे लोगों को बैंक अलग-अलग ब्याज दर पर ऋण देते हैं. बैंकों पर लोग विश्वास करते हैं, जिसके आधार पर बैंक चलते हैं.

जब साल 2007-08 में अमेरिका समेत कई विकसित देशों में बैंक डूब रहे थे, तो उस वक्त भारत के नीति-निर्माता गर्व कर रहे थे कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था मजबूत है और कर्ज देने की हमारी प्रक्रिया दुरुस्त है, इसलिए भारत में बड़े पैमाने पर कर्ज डूबने की आशंका नहीं है. लेकिन, चार साल पहले जब आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारतीय बैंकों की हालत ठीक नहीं है, क्योंकि बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों (कुछ बड़े ऋण) की वापसी नहीं हो रही है, इसलिए बैंकों की परिसंपत्तियां गैरलाभप्रद हो रही हैं यानी एनपीए की समस्या बढ़ रही है, तब देश हैरान रह गया. अब जो ऋण संकटग्रस्त हैं, उनमें धोखाधड़ी बड़ा कारण है. दरअसल, कंपनियाें को उनकी हैसियत से ज्यादा ऋण दे दिये गये, जिसका उन्होंने गलत इस्तेमाल किया.

जान-बूझकर ऋण अदायगी न करनेवालों (विलफुल डिफॉल्टर) की बड़ी संख्या भी एक कारण है. यह वास्तव में धोखा ही है. बैंकों द्वारा ऋणों को प्रदान करने और ऋण लेकर न चुकानेवाली कंपनियों की धोखाधड़ी के अलावा बैंकों में अन्य प्रकार के फ्रॉड भी बढ़ते जा रहे हैं.

साल 2017-18 में ही बैंकों में 28,459 करोड़ रुपये के फ्रॉड हुए. उसके पहले 2016-17 में ये फ्रॉड 23,933 करोड़ रुपये के थे. साल 2013-14 में ये मामले 10,170 करोड़ रुपये के थे. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता रहा है, वैसे-वैसे बड़ी राशियों के फ्रॉड होते रहे हैं. यही वजह है कि अब तक इन धोखाधड़ियों के कारण बैंकों का एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का धन खतरे में आ गया है.

यूं तो बैंकों में फ्रॉड कोई नयी बात नहीं है, लेकिन उनका बढ़ता आकार वास्तव में चिंता का विषय है. नयी तकनीक के आने से ऑनलाइन लेन-देन की मात्रा बढ़ गयी है.

कंप्यूटर हैकिंग द्वारा ऑनलाइन धोखाधड़ियां की जा रही हैं. कंप्यूटर सिस्टम को दोषरहित बनाने की ओर कदम बढ़ रहे हैं, लेकिन धोखेबाज कोई न कोई कमी खोजकर फ्रॉड कर ही लेते हैं. नीरव मोदी मामले से यह बात सामने आयी कि बैंकों की लेखा-प्रणाली में कमी के चलते, इस फ्रॉड का कई साल तक पता भी नहीं चल पाया. बैंकों में लेखा प्रणाली में सुधार की जरूरत इस बात से इंगित होती है.

हालांकि, धोखाधड़ियों के बावजूद भारतीय बैंक मजबूत हैं और उनमें जमा राशियों पर कोई खतरा नहीं है. इसके अतिरिक्त यह भी कि भारत में अधिकांश जमा राशियां सरकारी बैंकों में हैं और सरकार उन्हें लौटाने के लिए प्रतिबद्ध है. हाल ही में जब बैंकिंग नियमों में बदलाव करते हुए ‘बेल-इन’ के प्रावधान की बात आयी, तो भी सरकार ने इस बात को दोहराया था. लेकिन, बढ़ते एनपीए और फ्रॉड कहीं-न-कहीं बैंकों की विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिह्न लगाते हैं.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बैंकों की लेखा प्रणाली में सुधार कर विलफुल डिफॉल्टरों से पैसा वसूलने के लिए पुरजोर कोशिशें की जायें. एक ओर सरकार के 2.11 लाख करोड़ रुपये के बेल आउट पैकेज और दूसरी ओर वसूली में सख्ती और नये दिवालिया कानून के लागू होने से बैंकों की माली हालत सुधारने में बड़ी मदद मिलेगी.

साल 2016 में वर्तमान सरकार ने नया दिवालिया कानून बनाया, जिसकी खासियत है कि कोई कंपनी या व्यक्ति यदि अपनी देनदारियों को तय समय में चुका पाने में असमर्थ है, तो एक निश्चित प्रक्रिया के अनुरूप एक कालखंड में उसकी परिसंपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं की भरपाई की जायेगी.

इससे पहले किसी कंपनी या व्यक्ति को दिवालिया घोषित करने में एक लंबी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता था और जाहिर है, इससे उस कंपनी या व्यक्ति पर उधार और बोझ बढ़ता जाता था.

इन फ्रॉडों से निपटने के लिए देश में साइबर सिक्योरिटी को भी दुरुस्त करने की जरूरत है, जिसमें अभी बहुत कम काम हुआ है और इसमें सुधार जरूरी है. यह केवल बैंकों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भी जरूरी है.

अमेरिका का हाल ही के बैंकिंग संकट का उदाहरण हमारे सामने है. दिवालिया कानून की सफलता के बाद अब साइबर कानूनों में सुधार करते हुए दोषियों को त्वरित सजा का प्रावधान और वित्तीय अपराधों के संबंध में कानून में सख्ती लाकर ही इस उभरते बैंकिंग संकट से निजात पायी जा सकती है. एक लाख करोड़ रुपयों को संकट से बाहर निकालने के लिए और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार को ऐसे कई प्रभावी कदम उठाने की सख्त जरूरत है.

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