दलितों का मजाक
आरक्षण, आंबेडकर की मूर्ति तोड़ना, दलित उत्पीड़न और एससी-एसटी एक्ट जैसे मुद्दों के लेकर दलितसमाज में रोष व्याप्त है. ऐसे में दलितों के बीच दरकती साख को काबू करने के लिए बीजेपी विधायक दलितों के घर खाना खाने जा रहे हैं, जहां मेज से लेकर खाना व प्लेट तक खुद के होते हैं. दो रोटी […]
आरक्षण, आंबेडकर की मूर्ति तोड़ना, दलित उत्पीड़न और एससी-एसटी एक्ट जैसे मुद्दों के लेकर दलितसमाज में रोष व्याप्त है. ऐसे में दलितों के बीच दरकती साख को काबू करने के लिए बीजेपी विधायक दलितों के घर खाना खाने जा रहे हैं, जहां मेज से लेकर खाना व प्लेट तक खुद के होते हैं. दो रोटी खाकर तंगी में जीवन बिताने वाले गरीब दलित के घर जाकर होटल में बने तरह-तरह के लजीज पकवान खाना गरीबी का मजाक है. आखिर इसे दलितों का अपमान क्यों न कहा जाये?
नेताओं में भी भोज की तस्वीर सोशल मीडिया में डालकर दलितों का हितैषी बताने की होड़-सी मच चुकी है, लेकिन कोई नेता दलितों के गांवो में लोगो की समस्याओं को शेयर नहीं कर रहे हैं. इस प्रेम के ड्रामे से दलित को कुछ नहीं मिलने वाला है. समझ नहीं पाया हूं कि पार्क से लेकर एयरपोर्ट तक का नाम बदल देने और उनके घर जाकर बाहर का खाना खा लेने से दलितों का भला कैसे हो सकता है?
महेश कुमार, इमेल से