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लंबित मामलों की समस्या

अदालतों में लटके पड़े मामलों की मुश्किल को ‘तारीख पे तारीख’ के तंजभरे मुहावरे से इंगित किया जाता है. एक मुहावरा यह भी है कि इंसाफ में देरी इंसाफ से इनकार है. लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय के जज शाहरुख कथावाला ने शुक्रवार-शनिवार की रात 3.30 बजे तक काम कर और उस दिन तुरंत सुनवाई के […]

अदालतों में लटके पड़े मामलों की मुश्किल को ‘तारीख पे तारीख’ के तंजभरे मुहावरे से इंगित किया जाता है. एक मुहावरा यह भी है कि इंसाफ में देरी इंसाफ से इनकार है.

लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय के जज शाहरुख कथावाला ने शुक्रवार-शनिवार की रात 3.30 बजे तक काम कर और उस दिन तुरंत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध सभी मामलों का निबटारा कर शानदार नजीर पेश की है. यह गर्मी की छुट्टियों से पहले का आखिरी कार्यदिवस था और उन्हें यह एहसास था कि इन मामलों को रोकने से संबद्ध पक्षों को दिक्कत होगी. वैसे भी जज कथावाला सुबह जल्दी काम शुरू करने और देर शाम तक सुनवाई करने के लिए जाने जाते हैं.

देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ लंबित मामलों का दबाव जजों पर है तथा कम जज होने के कारण सुनवाई पूरी होने में सालों लग जाते हैं. ऐसे में कथावाला जैसे जजों से उम्मीदें बढ़ जाती हैं, पर यह भी समझना होगा कि कुछ जजों के रात-दिन काम करने से समस्या का स्थायी समाधान संभव नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि 24 उच्च न्यायालयों में 37 फीसदी पद खाली हैं.

फरवरी में रिक्तियों की संख्या 400 के स्तर पर पहुंच चुकी है. नियुक्ति के लिए भेजे गये करीब 120 नाम सरकारी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. नतीजा यह है कि उच्च न्यायालयों में लटके पड़े मुकदमों की तादाद 42 लाख के आसपास पहुंच चुकी है. यह बेहद चिंताजनक है कि इनमें से लगभग आधे मुकदमे पांच साल या उससे ज्यादा अरसे से लंबित हैं. यह हाल सिर्फ इंसाफ के लिहाज से ही नहीं, बल्कि आर्थिक विकास के लिए भी ठीक नहीं है.

आर्थिक समीक्षा के अनुसार, 52 हजार करोड़ की विनिर्माण परियोजनाएं अदालती पेंच में उलझी होने की वजह से रुकी पड़ी हैं. खाली पदों को नहीं भरने और न्यायपालिका को समुचित संसाधन मुहैया न कराने के पीछे सबसे बड़ी वजह सरकार और सर्वोच्च न्यायालय में चल रही खींचतान है, जो कई अन्य कारकों के जुड़ने के कारण बहुत उलझ चुकी है. लेकिन सरकार के पास भी बचाव के तर्क हैं.

पूर्वोत्तर के उच्च न्यायालयों में जजों की कम संख्या से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में सरकार ने कॉलेजियम पर ही दोष मढ़ दिया. उसका कहना है कि कॉलेजियम पर्याप्त संख्या में नामों के प्रस्ताव सरकार को नहीं भेजता है. सरकार का यह कहना निराधार नहीं है. कुछ न्यायालयों में 40 पदों के खाली होने के बावजूद तीन नाम ही मंजूरी के लिए भेजे गये हैं.

पर, यह भी उतना ही सच है कि जो नाम भेजे गये हैं, उन पर सरकार समय से फैसला लेने में नाकाम रही है. ऐसे में दोनों पक्षों को त्वरित गति से सकारात्मक कदम उठाना होगा, अन्यथा जजों की पुरजोर मेहनत के बाद भी अदालतों में तारीखों पर लोगों का भटकना जारी रहेगा.

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