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बिना जनचेतना प्रदूषण से मुक्ति नहीं

II आशुतोष चतुर्वेदी II प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की, जिसमें 14 शहर भारत के हैं. चिंता की बात है कि इसमें बिहार के तीन शहर हैं. गया चौथे, पटना पांचवें और मुजफ्फरपुर नौवें स्थान पर है. रिपोर्ट के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2018 6:53 AM
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II आशुतोष चतुर्वेदी II
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की, जिसमें 14 शहर भारत के हैं. चिंता की बात है कि इसमें बिहार के तीन शहर हैं. गया चौथे, पटना पांचवें और मुजफ्फरपुर नौवें स्थान पर है. रिपोर्ट के अनुसार कानपुर दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है.
इस लिस्ट में दिल्ली छठे नंबर पर है और वाराणसी तीसरे नंबर पर. ये आंकड़े इन शहरों की वायु गुणवत्ता के आधार पर जारी किये गये हैं. पीएम (फाइन पर्टिकुलर मैटर) के आधार पर दुनिया के 100 देशों के चार हजार शहरों में अध्ययन के बाद ये आकंड़े सामने आये हैं. इसे हम सबको गंभीरता से लेना चाहिए और स्थितियों को बेहतर करने के उपाय करने चाहिए.
2010 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रदूषित शहरों की सूची जारी की थी, तो दिल्ली पर सर्वाधित प्रदूषित शहर था और दूसरे और तीसरे नंबर पर पाकिस्तान के पेशावर और रावलपिंडी शहर थे. लेकिन पाकिस्तान ने अपनी स्थिति में काफी सुधार किया. इसी तरह 2013 में दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहर में अकेले चीन के पेइचिंग समेत 14 शहर शामिल थे.
लेकिन चीन ने कड़े कदम उठाये और प्रदूषण की समस्या पर काबू पा लिया. कहने का आशय यह है कि अगर हम भी उपाय करें, तो स्थिति पर काबू पाया जा सकता है. डब्ल्यूएचओ ने एक और गंभीर तथ्य की ओर इशारा किया है और कहा है कि भारत में 34 फीसदी मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है. ये आंकड़े किसी भी देश और समाज के लिए बेहद चिंताजनक हैं.
डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि प्रदूषण के कारण हर साल दुनियाभर में 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें 24 लाख भारतीय होते हैं. दरअसल, वायु प्रदूषण से लोग हृदय व सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों के कैंसर जैसे घातक रोगों के शिकार हो जाते हैं.
देश में लंबे अरसे से स्वच्छता परिदृश्य निराशाजनक रहा है. महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आये, तो उस दौरान उन्होंने पाया था कि भारतीयों में साफ-सफाई के प्रति चेतना का भारी अभाव है.
चिंताजनक बात यह है कि यह चेतना आज भी कम है. महात्मा गांधी ने 20 मार्च, 1916 को गुरुकुल कांगड़ी में दिये अपने भाषण में कहा था कि बच्चों के लिए स्वच्छता और सफाई के नियमों के ज्ञान के साथ ही उनका पालन करना भी प्रशिक्षण का एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए. उन्होंने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था.
गांधीजी जब किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए चंपारण गये थे, उस दौरान भी उन्होंने स्वच्छता की महत्व को बताया था. गांधीजी चाहते थे कि अंग्रेज प्रशासन उनके कार्यकर्ताओं को स्वीकार करे, ताकि वे समाज में शिक्षा और सफाई के कार्यों को भी शुरू कर सकें.
लोग जब गांधीजी के साथ रहने की इच्छा जाहिर करते, तो इस बारे में उनकी पहली शर्त होती थी कि आश्रम में रहने वालों को आश्रम की सफाई करनी होगी. गांधीजी ने रेलवे के तीसरे श्रेणी के डिब्बे में देशभर की यात्रा की थी. वह भारतीय रेलवे के तीसरे श्रेणी के डिब्बे की गंदगी से स्तब्ध थे.
उन्होंने समाचार पत्रों में पत्र लिखकर इस ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया था. 25 सितंबर, 1917 को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि जिस तरह की गंदगी और स्थिति इन डिब्बों में है, उसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता, क्योंकि वह हमारे स्वास्थ्य और नैतिकता को प्रभावित करती है.
लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस विषय में संजीदा हों. एक बात स्पष्ट है कि यह काम केवल केंद्र अथवा राज्य सरकार के बूते का नहीं है. इसमें जनभागीदारी जरूरी है. सरकारें प्रदूषण नियंत्रित करने की जिम्मेदारी अकेले नहीं निभा सकती हैं. प्रदूषण मुख्य रूप से मानव निर्मित है.
इसलिए इसमें सुधार एक सामूहिक जिम्मेदारी है. साथ ही हमारी जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, उसके अनुपात में सरकारी प्रयास हमेशा नाकाफी रहने वाले हैं. हमें प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना ही होगा, तभी स्थितियों में सुधार लाया जा सकता है. वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने और पर्यावरण को बेहतर बनाने में हर व्यक्ति कुछ न कुछ योगदान दे सकता है.
ठीक है जिन शहरों के नाम आ गये, उन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के हमारे अन्य अनेक शहरों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. स्वच्छता और सफाई के काम को करने में सांस्कृतिक बाधाएं भी आड़े आती हैं. देश में ज्यादातर धार्मिक स्थलों के आसपास अक्सर बहुत गंदगी दिखाई देती है. इन जगहों पर चढ़ाये गये फूलों के ढेर लगे होते हैं.
कुछेक मंदिरों ने स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से फूलों के निस्तारण और उन्हें जैविक खाद बनाने का प्रशंसनीय कार्य प्रारंभ किया है, जिसकी जितनी तारीफ की जाये कम है. अन्य धर्म स्थलों को भी ऐसे उपाय अपनाने चाहिए.
ऐसा माना जाता है कि बिहार के शहरों के प्रदूषण की एक बड़ी वजह जनसंख्या घनत्व है, लेकिन दुनिया के कई ऐसे शहर हैं, जो उच्च जनघनत्व के बावजूद प्रदूषण की मुक्त हैं.
सिंगापुर दुनिया का आठवां सबसे अधिक जन घनत्व वाला शहर है, लेकिन अपने बेहतरीन रखरखाव के कारण यह दुनिया का सबसे साफ-सुथरा शहर है. विदेशी शहरों को तो छोड़ें, अपने देश में ही देखें कि इस सूची में दक्षिण का कोई शहर शामिल नहीं हैं.
बिहार के शहरों के मुकाबले हैदराबाद, बेंगलुरु जैसे शहर आबादी के लिहाज से बड़े हैं, लेकिन योजनाबद्ध तरीके से विकास और बेहतर परिवहन व्यवस्था की वजह से इन शहरों को प्रदूषण की समस्या से जूझना नहीं पड़ रहा है. यही स्थिति पूर्वोत्तर के राज्यों के शहरों की है. औरों को तो छोड़िए, यदि झारखंड के संथाली गांवों को देखेंगे, तो आप पायेंगे कि वे किसी भी शहर से ज्यादा सुंदर और साफ-सुथरे हैं. यह सरकारी प्रयासों से नहीं होता, बल्कि जनभागीदारी से संभव हो पाता है.
नागरिकों में जब तक साफ सफाई और प्रदूषण के प्रति चेतना नहीं आयेगी, तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं होगा. होता यह है कि हम लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके सुंदर मकान बना लेते हैं, पर नाली पर ध्यान नहीं देते. अगर नाली है भी, तो उसे भी पाट देते हैं. कोशिश करते हैं कि मकान के बाहर सरकारी जमीन पर कब्जा कर पार्किंग करते रहें.
हम कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं. साफ-सफाई में नगर निगम की भी अहम भूमिका होती है, लेकिन हम अपने पार्षद से वार्ड की साफ-सफाई के बारे में नहीं पूछते. नगर निगम चुनावों में वोट पार्टी, धार्मिक और जातिगत आधार पर दे आते हैं. कम-से-कम पार्षद चुनने की कसौटी तो जनसुविधाओं के काम को रखिए.
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