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अलविदा ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी!

ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्सनरी के नये संस्करण का प्रकाशन अब नहीं होगा. यह फैसला इसके प्रकाशकों ने किया है. कहा जा रहा है भारी-भरकम आकार और लागत के कारण छपाई संभव नहीं. इससे पूर्व भी अमेरिका और यूरोप की कई पत्रिकाएं और अखबारों का प्रकाशन इन्हीं कारणों से बंद कर दिया गया. एक समय था जब […]

ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्सनरी के नये संस्करण का प्रकाशन अब नहीं होगा. यह फैसला इसके प्रकाशकों ने किया है. कहा जा रहा है भारी-भरकम आकार और लागत के कारण छपाई संभव नहीं. इससे पूर्व भी अमेरिका और यूरोप की कई पत्रिकाएं और अखबारों का प्रकाशन इन्हीं कारणों से बंद कर दिया गया. एक समय था जब एक बड़ा बौद्धिक वर्ग एकमत से उक्त डिक्शनरी के प्रयोग का समर्थन करता था. पढ़े-लिखे लोगों और पुस्तक विक्रेताओं के जुबान पर एक जुमला बड़ा मशहूर हुआ करता था-ऑक्सफोर्ड मतलब भरोसा.

इस डिक्शनरी को न केवल जानकारी का विश्वस्त स्नेत माना जाता है, बल्कि इसने भाषाई दृष्टि से विश्व की विविधता को बिना किसी दखल के शामिल किया है. समय बदला, सोच बदली और बदला अभिव्यक्ति का माध्यम. भले ही मुद्रित सामग्रियों को उपलब्ध कराना घाटे का सौदा बन गया हो, परंतु आज भी दुनिया की एक बड़ी आबादी इन्हीं माध्यमों पर आश्रित है. ऐसे में यह हालिया खबर उन लोगों के लिए चेतावनी भी है जो बदलती हुई दुनिया के हिस्सेदार नहीं बनना चाहते और तकनीक के साथ गहरा सारोकार नहीं रखना चाहते हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी की इस 21वीं सदी में हम कई मनोरंजक सामग्रियों से वंचित हो रहे हैं, तो दूसरी ओर दुनिया की एक बड़ी आबादी पैसों के अभाव में कथित हाइटेक जीवन का अंग नहीं बन पा रही है. भारत जैसे देश में लोग हाथों में अखबार लेकर ही चाय की चुस्कियां लेना पसंद करते हैं. पेड़-पौधों की घटती संख्या बदलाव का संकेत दे रही है. तो ऐसे में आइए, हम सब धीरे-धीरे हाइटेक जीवन का अंग बन पारिस्थितिक तंत्र को बचाने में प्रयासरत रहें, क्योंकि आनेवाला समय बहुत चुनौतीपूर्ण है.

सुधीर कुमार, गोड्डा

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