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ईरान-परमाणु समझौता

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने परमाणु समझौते से खुद को अलग कर दिया जिससे भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इसकी आलोचना हो रही है. इसे दो तरह से समझा जा सकता है. पहला 2015 में जब ईरान से समझौता हुआ था, तो तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा थे. उनके साथ-साथ फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी […]

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने परमाणु समझौते से खुद को अलग कर दिया जिससे भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इसकी आलोचना हो रही है.
इसे दो तरह से समझा जा सकता है. पहला 2015 में जब ईरान से समझौता हुआ था, तो तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा थे. उनके साथ-साथ फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी अन्य देशों ने सहमति जतायी थी. ईरान ने भी हालांकि बहुत हद तक अपने यूरेनियम उत्खनन में कमी लायी थी.
ईरान के दो जगहों पर बड़े पैमाने पर यूरेनियम संवर्धन व हथियार निर्माण कार्य में भी कमी आयी थी. अब अमेरिका के हट जाने से बेलगाम तरीके से उत्खनन की शुरुआत होगी और अगर प्रतिबंध दोबारा लगाये जाये, तो यूरेनियम संवर्धन आतंकियों के हाथों में भी जाने का खतरा बना रहेगा. दूसरी मुख्य बात पश्चिम एशियाई देशों में फिर से असंतोष की कवायद शुरू होगी. अत: निष्कर्ष यही निकलता है कि बड़े और संपन्न देश होने के नाते इस तरह के बचकाने निर्णय से परहेज करना चाहिए.
संकेत तिवारी, इमेल से

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