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घरेलू उत्पादन पर ध्यान

रक्षा मंत्रालय और सेना ने जरूरी गोला-बारूद के देश में ही उत्पादित करने के लिए एक दीर्घकालीन योजना को अंतिम रूप दे दिया है. करीब 15 हजार करोड़ रुपये के निवेश की इस योजना के तहत सात तरह के गोला-बारूद बनाये जायेंगे. आवंटित राशि का उपयोग निजी क्षेत्र के उद्योगों की क्षमता बढ़ाने के लिए […]

रक्षा मंत्रालय और सेना ने जरूरी गोला-बारूद के देश में ही उत्पादित करने के लिए एक दीर्घकालीन योजना को अंतिम रूप दे दिया है. करीब 15 हजार करोड़ रुपये के निवेश की इस योजना के तहत सात तरह के गोला-बारूद बनाये जायेंगे. आवंटित राशि का उपयोग निजी क्षेत्र के उद्योगों की क्षमता बढ़ाने के लिए किया जायेगा. फिलहाल, सरकार 11 कंपनियों के निविदाओं पर विचार कर रही है.
दो साल पहले जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के एक बड़े ठिकाने पर हुए आतंकी हमलों की जांच के दौरान यह चिंताजनक तथ्य सामने आया था कि सघन युद्ध की स्थिति में कुछ खास किस्म के गोला-बारूद की उपलब्धता 10 दिन के लिए भी पर्याप्त नहीं है. इसी तरह की कमियां वायु सेना और नौसेना में भी पायी गयी थीं. पिछले साल सीएजी की रिपोर्ट में भी इसे रेखांकित किया गया था.
सामान्य नियम यह है कि सेना के पास गंभीर लड़ाई की स्थिति में 40 दिनों तक चल सकने लायक साजो-सामान रहने चाहिए. कुछ पड़ोसी देशों की आक्रामकता को देखते हुए ऐसी खामियों को दूर किया जाना बहुत जरूरी है. उड़ी के बाद गोला-बारूद, कल-पुर्जे, इंजन और अन्य चीजों की खरीद के लिए 24 हजार करोड़ के विदेशी करार हुए हैं. इसके अलावा तीनों सेनाओं को खरीद और खर्च से जुड़े वित्तीय अधिकार भी दिये गये हैं. इस लिहाज से घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए लिया गया फैसला सराहनीय है. हालांकि इसे पूरी तरह से कार्यान्वित होने में 10 साल का समय लगेगा, पर आधार तैयार हो जाने के बाद आपूर्ति की समस्या काफी हद तक दूर होने की उम्मीद है.
इससे हथियारों के आयात के खर्च में भी बचत की गुंजाइश होगी. उल्लेखनीय है कि चीन ने 2017 में अपनी रक्षा जरूरतों पर 228 बिलियन डॉलर खर्च किया है, जबकि इस मद में भारत का हिसाब 63.9 बिलियन डॉलर का है. सैन्य खर्च हमारा भी बढ़ा है, पर इससे सेना को जरूरत के मुताबिक अत्याधुनिक साजो-सामान नहीं मिल पा रहे हैं. इसका कारण यह है कि वेतन और पेंशन जैसे मदों में ही ज्यादा बजट खप जाता है.
कुल बजट का महज 14 फीसदी ही आधुनिकीकरण पर खर्च किया जाता है, जबकि वेतन-भत्तों का खर्च 63 फीसदी है. कुछ समय पहले थलसेना के उपाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जेनरल शरत चंद ने संसद की स्थायी समिति को बताया था कि 2018-19 के बजट में सेना के आधुनिकीकरण के लिए 21,338 करोड़ के आवंटन ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया है, क्योंकि इससे तो चालू योजनाओं और आपात खरीद के लिए 29 हजार करोड़ की देनदारी का भी पूरा भुगतान नहीं हो सकता है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार देश के भीतर रक्षा उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा देने के साथ सशस्त्र बलों की तात्कालिक जरूरत के हिसाब से धन मुहैया करायेगी, ताकि तीनों सेनाएं समुचित संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें.

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