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पश्चिम की हवा का पूरब पर असर

।। राकेश कुमार।। (प्रभात खबर, रांची) पूरब में रहनेवाले सुशासन बाबू बहुत उदास बैठे थे. उनके दोस्त विकास बाबू भी चुपचाप थे. सुशासन बाबू ने विकास बाबू से पूछा- ‘‘अच्छा बताओ, आज हम दोनों को एक साथ काम करते हुए आठ साल हो गये. हर किसी को हम प्यारे लग रहे थे कि अचानक हमें […]

।। राकेश कुमार।।

(प्रभात खबर, रांची)

पूरब में रहनेवाले सुशासन बाबू बहुत उदास बैठे थे. उनके दोस्त विकास बाबू भी चुपचाप थे. सुशासन बाबू ने विकास बाबू से पूछा- ‘‘अच्छा बताओ, आज हम दोनों को एक साथ काम करते हुए आठ साल हो गये. हर किसी को हम प्यारे लग रहे थे कि अचानक हमें लोग नहीं देखना चाहते. हम दोनों ने पूरे राज्य की तस्वीर बदलने की कोशिश की और राज्य को देश-विदेश में सम्मानित स्थान दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
लालटेन की रोशनी से निजात दिलाने का प्रयास किया और बहुत हद तक सफल भी हो गये, फिर ऐसी स्थिति क्यों? हमको चाहने वाले लोग, जिनकी हम सेवा में लगे थे, वे हमारा साथ छोड़ कर क्यों जाना चाह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा?’’ इस पर विकास बाबू बोले- ‘‘हां भाई, तुम ठीक कह रहे हो. ऐसा तो हमने भी अनुभव कर लिया है. वो क्या है ना कि अभी देश में एक नयी तरह की हवा चली है.
16 मई को इसका अहसास सभी को हुआ है. जानते हो, यह हवा पश्चिम से आयी है और इसने हम पूरबवालों को हिला दिया है. वैसे भी देश की आदत रही है पश्चिम की ओर मुंह करना. सुना है कि पश्चिम में भी कोई विकास भाई और सुशासन भाई एक साथ काम करते हैं और उनकी तकनीक इतनी बढ़िया है कि वे हमारे चलने की गति को पछाड़ देंगे. और यहां के जो साथी हमारे साथ थे वे सभी उसी नयी तकनीक को पूरब में लाने की जुगत में लग गये हैं.’’ सुशासन बाबू बोल- ‘‘क्या कहा? वहां हमारी बिरादरी के लोग हमसे तेज काम कर रहे हैं? किसने कहा यह? कौन ऐसी बातें करके हम पूरबवालों को भड़का रहा है? तुम तो जानते ही हो कि पूरब में जैसी स्थिति थी उससे निकलने और उसे बेहतर करने का काम छोटा नहीं था. लेकिन यह क्या हो गया.. लोग अंदर ही अंदर हमसे नाराज हो गये और हमें पता तक नहीं चला!’’ विकास बाबू बोले- ‘‘हम लोग पिछले आठ बरस से लगातार चल रहे हैं.
लगता है, अब अपनी रफ्तार पहले जैसी नहीं रह गयी है. जनता को जरूर लग रहा होगा कि हम बैठ गये हैं. सुस्ता रहे हैं. काम करने लायक नहीं रहे.’’ सुशासन बाबू चिल्लाये- ‘‘ये क्या बकवास कर रहे हो? तुमको तो मालूम ही है कि हम लोगों ने दिन-रात एक कर दिया था और अब भी लगातार काम कर रहे हैं. अगर दूसरों को ‘मोदियाबिंद’ हो जाये और उसे ये सब दिखाई न दे तो हम क्या करें?.. तुम तो ऐसा नहीं बोलो.’’ विकास बाबू ने टोका- ‘‘दोस्त, मैं तो सिर्फ अनुमान लगा रहा था. तुम तो यूं ही नाराज हो गये, इतने दिनों की दोस्ती कहां गयी?’’ सुशासन बाबू बोलते रहे, ‘‘जिसको जो समझना हो समङो. हमने तो पूरी मेहनत से लगातार आठ साल काम किया है. पश्चिम की हवा बहुत तेज है.. अब तो देखना होगा कि दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं. वो कहते हैं न कि दूर का ढोल सुहाना होता है.. आगे-आगे देखिए होता है क्या.. राजनीति की चाल है भाई.’’

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