पर्यावरण और रोजगार
अमेरिका और चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा ऊर्जा का उपभोग करनेवाला देश है. ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों, जैसे जीवाश्म ईंधन (डीजल, पेट्रोल आदि) के इस्तेमाल से पैदा पर्यावरणीय प्रदूषण और वैश्विक तापन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भी भारत शामिल है. भारत ने इसी कारण वैकल्पिक ईंधन अपनाने की दिशा में अपने प्रयास […]
अमेरिका और चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा ऊर्जा का उपभोग करनेवाला देश है. ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों, जैसे जीवाश्म ईंधन (डीजल, पेट्रोल आदि) के इस्तेमाल से पैदा पर्यावरणीय प्रदूषण और वैश्विक तापन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भी भारत शामिल है. भारत ने इसी कारण वैकल्पिक ईंधन अपनाने की दिशा में अपने प्रयास तेज किये हैं. सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा धान के पुआल आदि से बननेवाले जैव एथेनॉल आदि के उपयोग को बढ़ावा देने तथा नयी तकनीक विकसित करने के लिए योजनाएं बनाने के साथ सरकारी निवेश भी बढ़ाया गया है.
जनवरी में केंद्र सरकार ने कहा था कि देश में वैकल्पिक ईंधन का उद्योग एक हजार अरब रुपये का हो सकता है और जैव एथेनॉल के उत्पादन के लिए गांवों में 1500 औद्योगिक इकाइयां लगाने की जरूरत है, जिससे 25 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. सरकार का मानना है कि इन कोशिशों से प्रदूषण रोकने और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही बड़ी तादाद में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. इस आशा पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट ने भी मोहर लगा दी है. इसके मुताबिक देश में 2022 तक सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के उत्पादन, वितरण और उपभोग से जुड़ी तकनीक, ढांचे और उपभोक्ता बाजार को तैयार करने के क्रम में तकरीबन तीन लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है.
हालांकि, जीवाश्म ईंधन के सहारे चलनेवाले उद्योगों को एक झटके में हरित ऊर्जा या स्वच्छ ईंधन के अनुकूल नहीं बनाया जा सकता है और ऐसा करने पर रोजगार घटने की भी आशंका है, लेकिन रिपोर्ट ने एक आशाजनक तस्वीर पेश की है. जीवाश्म ईंधन से निर्भरता कम करने पर रोजगार के जितने अवसर घटेंगे, न सिर्फ उसकी भरपाई स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के विस्तार से पैदा रोजगार से हो जायेगी, बल्कि अधिक अवसर उपलब्ध होंगे. वर्ष 2030 तक नये ऊर्जा स्रोतों पर आधारित उद्योगों से वैश्विक स्तर पर 25 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जबकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल का चलन छोड़ने से इस अवधि में महज चार लाख रोजगार के अवसर घटेंगे. बहरहाल, भारत के लिए एक बड़ी चुनौती हरित ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग से संबंधित बुनियादी ढांचा खड़ा करना और कुशल श्रमशक्ति विकसित करना है. भारत अगर समयबद्ध तरीके से ऐसा कर पाया, तो अर्थव्यवस्था के लिए समृद्धि के नये द्वार खुल सकते हैं.
विशेषज्ञों का आकलन है कि हरित ऊर्जा से चलनेवाले वाहन बढ़ने से भारत कच्चे तेल के उपभोग में सालाना 360 मिलियन बैरल की कमी कर सकता है. अगर 2030 तक कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 96 डॉलर पर पहुंचती है, तो भारत तब तक कच्चे तेल के खर्च में सालाना 7.8 मिलियन डॉलर की बचत कर रहा होगा. व्यापार के संतुलन और ऊर्जा की आत्मनिर्भरता के लिहाज से यह अत्यंत अहम कदम साबित होगा.