सोशल साइट्स पर जाने से ऐसा लगता है कि युद्ध छिड़ा है. आरोप-प्रत्यारोप से सराबोर फेसबुक आतंकित करता है. कहीं नयी बात नहीं हो रही. कोई समाधान की बात नहीं कर रहा. समस्याओं को लेकर चर्चा गर्म है.
उपाय की बातें ठंडी पड़ी हुई हैं. कभी धर्म के आधार पर, तो कभी जातीय आधार पर असहिष्णुता गढ़ी जाती है. समाज का एक भयावह स्वरूप तराशा जा रहा है. ऐसी बात नहीं है कि समाज में कोई समस्या नहीं है, पर समाधान का रास्ता भी तो नहीं है. माना कि हमें अभिव्यक्ति की आजादी है, पर कुपोषित अभिव्यक्ति समाज की समरसता के लिए खतरनाक है.
पोषक विचार ही समाज को मजबूत बनायेगा, उसके उत्थान की राह तैयार करेगा. सबके सुख और समृद्धि के पर्याय बनेगा. पोषक विचारों के लिए भी एक मुहिम की जरूरत है. ऐसा केवल उचित शिक्षा के माध्यम से हो सकता है.
रोशन कुमार झा, कडरू; रांची