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लोकल फैक्टर नहीं चला
सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से अलग रखने के लिए कांग्रेस और जेडीएस साथ आ गये हैं. वैसे भी चुनाव संपन्न हो जाने के बाद सत्ता पाने के लिए विरोधी दलों के बीच की खटास कम हो ही जाती है. लिंगायत वोट पाने के लिए कांग्रेस ने ऐन मौके पर रणनीति बनायी, लेकिन वह उसके विपरीत […]
सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से अलग रखने के लिए कांग्रेस और जेडीएस साथ आ गये हैं. वैसे भी चुनाव संपन्न हो जाने के बाद सत्ता पाने के लिए विरोधी दलों के बीच की खटास कम हो ही जाती है.
लिंगायत वोट पाने के लिए कांग्रेस ने ऐन मौके पर रणनीति बनायी, लेकिन वह उसके विपरीत काम कर गयी. दूसरी ओर, येदियुरप्पा उसी समुदाय से आते हैं, लिहाजा भाजपा को शायद उसका पूरा फायदा मिल गया और अधिकांश वोट भाजपा के पक्ष में चले गये.
लोकल फैक्टर की बात की जाये, तो भाजपा की ओर से यदि व्यापक संख्या में प्रमुख नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों समेत प्रधानमंत्री की रैली नहीं हुई होती, तो शायद 10 से 20 सीटें और कम आतीं. इसलिए इतना तो तय है कि लोकल फैक्टर से यह चुनाव बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुआ है, जैसा कि आम तौर पर विधानसभा के चुनाव में होता रहा है.
डॉ हेमंत कुमार, इमेल से
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