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शहरीकरण की तीव्र गति
आज 55 फीसदी वैश्विक आबादी (4.2 अरब) शहरी इलाकों में रहती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर लोगों के रुख और आबादी बढ़ने से यह आंकड़ा साल 2050 तक 68 फीसदी तक पहुंच जायेगा. यह तेज रुझान मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका के देशों में दिख रहा है. साल 2018 से 2050 […]
आज 55 फीसदी वैश्विक आबादी (4.2 अरब) शहरी इलाकों में रहती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर लोगों के रुख और आबादी बढ़ने से यह आंकड़ा साल 2050 तक 68 फीसदी तक पहुंच जायेगा.
यह तेज रुझान मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका के देशों में दिख रहा है. साल 2018 से 2050 के बीच शहरी आबादी में भारत 41.6 करोड़, चीन 25.5 करोड़ और नाइजीरिया 18.9 करोड़ के साथ सर्वाधिक योगदान कर सकते हैं.
इस अवधि में टोक्यो को पीछे छोड़ते हुए दिल्ली सबसे बड़ी आबादी का नगर बन जायेगा. शहरीकरण की प्रक्रिया आर्थिक उपलब्धियों का सूचक है, लेकिन इसकी चुनौतियां भी बड़ी हैं. चीन के बाद भारत में सबसे ज्यादा आबादी (89.3 करोड़) गांवों में वास करती है. चूंकि 2050 तक भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक होगी, इसलिए शहरीकरण को लेकर कई स्तरों पर संतुलित और समुचित नीतिगत पहलों की आवश्यकता है.
हमारे शहरों में बुनियादी ढांचे, प्रशासन और स्थायित्व के स्तर पर व्यापक खामियां हैं. शहरीकरण के दबाव में ये दिक्कतें बढ़ती ही जा रही हैं. बीते सालों में सरकार ने शहरी क्षेत्रों को विकास का अगुवा बनाने के इरादे से अमृत, स्मार्ट सिटी, हृदय, प्रधानमंत्री आवास योजना और स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं. मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के बजट में 2.8 फीसदी की बढ़ोतरी की गयी है.
साफ-सफाई, यातायात, स्वच्छ ऊर्जा जैसे जरूरी पहलुओं के लिए भी नीतियां बनायी गयी हैं. ऐसी पहलें अहम हैं, पर एक संपूर्ण राष्ट्रीय शहरी नीति की जरूरत है, जो राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के साथ मिलकर केंद्र द्वारा तैयार की जानी चाहिए. दुनिया के करीब एक-तिहाई देशों में ऐसी नीति लागू है. अक्तूबर, 2016 में 193 से ज्यादा देशों ने सतत विकास पर आधारित भविष्य के शहरीकरण के लिए प्रस्ताव पर सहमति बनायी थी, लेकिन डेढ़ साल के बाद भी भारत इस एजेंडे की दिशा में ठोस कदम नहीं उठा सका है.
विश्व स्तर पर सकल घरेलू उत्पादन में शहरों का योगदान 80 फीसदी है, पर पर्यावरण के लिए खतरनाक 70 फीसदी ग्रीनहाउस गैस भी यहीं पैदा होते हैं. दुनिया के 14 सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं. शहरी आबादी का बड़ा हिस्सा बुनियादी सुविधाओं से वंचित झुग्गी-झोपड़ियों में रहने के लिए अभिशप्त है.
योजना बनानेवाले विशेषज्ञों की औसत संख्या एक लाख की आबादी पर महज 0.23 है. स्थानीय निकाय धन और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं. शहरी प्रशासन के अधिकार एवं कार्यों से जुड़े 74वें संविधान संशोधन को ठीक से लागू नहीं किया जा सका है.
निःसंदेह हमारे भविष्य का आधार शहर हैं, पर बेहतर शहरों के बिना आनेवाले कल की बेहतरी का सपना कैसे पूरा हो सकेगा? उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें बिना किसी देरी के शहरीकरण की चुनौतियों का सामना करने के लिए माकूल उपायों पर ध्यान देंगी.
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