14.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राज्यपालों की भूमिका पर सवाल

II आशुतोष चतुर्वेदी II प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in कर्नाटक का नाटकीय घटनाक्रम आप सभी ने देखा. कभी विधानसभा, तो कभी उसके बाहर, तो कभी सुप्रीम कोर्ट तक यह संघर्ष चला. संभवत: आप आइपीएल देख रहे होंगे. इसमें कभी कोई टीम जीतती है और कभी दूसरी टीम का पलड़ा भारी होता है. सियासत और […]

II आशुतोष चतुर्वेदी II
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
कर्नाटक का नाटकीय घटनाक्रम आप सभी ने देखा. कभी विधानसभा, तो कभी उसके बाहर, तो कभी सुप्रीम कोर्ट तक यह संघर्ष चला. संभवत: आप आइपीएल देख रहे होंगे. इसमें कभी कोई टीम जीतती है और कभी दूसरी टीम का पलड़ा भारी होता है. सियासत और क्रिकेट में काफी साम्य है.
क्रिकेट में भी सारे दांव पेच खेल जाते हैं, रणनीति बनती है. मैदान के अंदर बाहर खिलाड़ियों के बीच गर्मागर्मी भी होती है, लेकिन इसको नियंत्रित करने मैदान में दो अंपायर मौजूद रहते हैं और तीसरा अंपायर मैदान के बाहर कैमरे की मदद से खेल पर नजर रखता है. लोकतंत्र में भी राज्यपाल और राष्ट्रपति की ऐसी ही भूमिका है. न्यायपालिका तीसरे अंपायर की भूमिका में रहती है. अंपायरों से तटस्थता की उम्मीद की जाती है, लेकिन अगर अंपायर की भूमिका पर भी सवाल उठने लगें, तो खेल के निष्पक्ष होने पर संदेह पैदा हो जाता है. सियासत जमकर करें, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल नहीं उठने चाहिए. उस पर जनता का भरोसा कम नहीं होना चाहिए.
कर्नाटक के हाल के सियासी घटनाक्रम में राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठ खड़े हुए है. यह पहला मौका नहीं है कि राज्यपाल सवालों के घेरे में आये हैं, लेकिन इस घटनाक्रम ने पुराने जख्मों को हरा कर दिया है.
कर्नाटक में जो हुआ, वह कोई नयी बात नहीं है. सभी जानते हैं कि राज्यपालों की नियुक्ति राजनीतिक होती है. ज्यादातर केंद्र में सत्तारूढ़ दल से संबद्ध नेता होते हैं. ये प्राय: पार्टी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ता होते हैं. हालांकि उनसे अपेक्षा की जाती है कि राज्यपाल बनने के बाद वे दलीय राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करेंगे, लेकिन व्यवहार में ऐसा होता नहीं है. वे निष्ठावान कार्यकर्ता बने रहते हैं.
यह बात सभी दलों के संदर्भ में लागू होती है. इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस के शासन के दौरान राज्यपाल पद का जमकर दुरुपयोग हुआ. गैर लोकतांत्रिक तरीके से अनेक सरकारें बर्खास्त की गयीं. राज्यपालों ने अनेक विवादित फैसले सुनाये. राज्यपालों के असंवैधानिक फैसलों की लंबी फेहरिस्त है. केंद्रीय नेतृत्व को खुश करने के लिए राज्यपालों ने क्या कुछ नहीं किया. बस, यहीं से राज्यपाल पद की गरिमा का क्षरण हुआ, लेकिन कभी तो परिस्थितियां बदलें. यह तर्क कि उन्होंने गलत किया तो आपका भी गलत करने का अधिकार बनता है, उचित नहीं है. अगर भाजपा अपने आपको कांग्रेस से अलग दल होने का दावा करती है, तो उसे अपने आचरण में भी यह दिखाना होगा. कर्नाटक के राज्यपाल ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया.
तर्क दिया गया कि वह सबसे बड़े दल के नेता हैं, जबकि स्पष्ट नजर आ रहा था कि उनके पास बहुमत नहीं है. इसके पहले कई राज्यों में तर्क चला कि सबसे बड़े दल के नेता के पास बहुमत नहीं है, इसलिए भाजपा गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जायेगा. एक जैसी परिस्थितियों के आकलन के दो तराजू नहीं हो सकते. कर्नाटक के राज्यपाल वजूभाई की पृष्ठभूमि भी जानना जरूरी है.
वह भाजपा के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ता हैं. जिस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, वजुभाई राज्य के वित्तमंत्री थे. बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के 13 साल के कार्यकाल में वजुभाई नौ साल तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहे. उन्होंने 2001 में मोदी के पहले विधानसभा चुनाव के लिए अपनी राजकोट की सीट छोड़ दी थी.
इसमें कोई शक नहीं है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्यपाल की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. राज्यपालों के पास विवेकाधीन अनेक अधिकार होते हैं.
संविधान के अनुच्छेद 155 में है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी, लेकिन हकीकत में राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिश के आधार पर ही राज्यपालों की नियुक्ति करते हैं. आजादी के बाद पहले डेढ़ दशक तक राज्यपाल की नियुक्ति से पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह करने की परंपरा थी. 1967 में कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें सत्ता में आ गयीं, तो कांग्रेस ने इस परंपरा को ही बंद कर दिया. सरकारिया आयोग की सलाह थी कि राज्यपाल का चयन राजनीति में सक्रिय व्यक्तियों में से नहीं होना चाहिए. आयोग की सिफारिश थी कि राज्यपालों का चयन केंद्र सरकार नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र समिति करे, जिसमें प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा अध्यक्ष, देश के उप राष्ट्रपति और राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल हों.
सरकारिया आयोग का कहना था कि संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल को केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में नहीं, बल्कि संघीय व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा था, लेकिन इन सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया.
राज्यपालों के असंवैधानिक फैसलों का शिकार अधिकांश राज्य रहे हैं. कर्नाटक इसका केंद्र रहा है. राज्य में पहले भी भारी विवाद हुए हैं और मामला सुप्रीम के हस्तक्षेप के बाद जाकर थमा है. कर्नाटक में 1983 में पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी. रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने.
उनके बाद अगस्त, 1988 में एसआर बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने 21 अप्रैल, 1989 को नैतिकता के आधार पर बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया. राज्यपाल सुबैया ने कहा कि बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है.
बोम्मई ने विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल से अनुमति मांगी, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया. बोम्मई ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक खंडपीठ ने एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में बहुचर्चित निर्णय दिया.
इसमें संविधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश थे. इस निर्णय की बड़ी विशेषता यह है कि इसने अनुच्छेद 356 के प्रयोग को अदालतों द्वारा समीक्षा न कर सकने की परंपरा को उलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा- उन सभी मामलों में, जहां कुछ विधायकों द्वारा सरकार से समर्थन वापस लेने की बात हो, बहुमत के निर्धारण का उचित तरीका सदन में शक्ति परीक्षण है, न कि किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत मत, भले ही वह राज्यपाल हो या राष्ट्रपति. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बोम्मई सरकार फिर से बहाल हुई.
बोम्मई फैसला भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में अहम फैसला माना जाता है. ऐसी उम्मीद की गयी थी कि इस फैसले के बाद राज्यपालों के मनमाने रवैये पर लगाम लगेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके बाद भी राज्यपालों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठते रहे हैं. वक्त आ गया है कि राज्यपालों के लिए लक्ष्मण रेखा का निर्धारण हो, ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था को कोई आघात न पहुंचे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें