सोची-समझी रणनीति है इस्तीफा देना

कुछ लोग नीतीश कुमार के इस्तीफे को असीम त्याग की उपमा दे रहे हैं. पर, सच्चे ढंग से अवलोकन करने के बाद ये इस्तीफा एक सोची-समझी रणनीति लग रही है. नीतीश ने पहले ही बिहार में अति पिछड़ों को दलित और महादलित में तोड़ कर तथा महादलित को विशेष सुविधाएं देकर राम विलास पासवान के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 21, 2014 5:29 AM

कुछ लोग नीतीश कुमार के इस्तीफे को असीम त्याग की उपमा दे रहे हैं. पर, सच्चे ढंग से अवलोकन करने के बाद ये इस्तीफा एक सोची-समझी रणनीति लग रही है. नीतीश ने पहले ही बिहार में अति पिछड़ों को दलित और महादलित में तोड़ कर तथा महादलित को विशेष सुविधाएं देकर राम विलास पासवान के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की थी, जो इस चुनाव में नमो लहर में गलत साबित हो गयी.

अब जीतन राम मांझी जो कि मुसहर समुदाय से आते हैं, उनको मुख्यमंत्री बना कर अतिपिछड़ों के वोट को अपने पक्ष में करने का उत्तम प्रयास किया है. नीतीश कुमार को बिहार से नमो लहर मिटाने के लिए और अपनी बात सारे जनता तक पहुंचाने के लिए काफी समय की जरूरत होगी और ऐसा प्रतीत हो रहा है की 2015 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए वो अभी से सक्रि य हो जायेंगे. शरद यादव का दिल्ली में दिया हुआ बयान की वो मोदी को रोकने के लिए लालू यादव से भी बिहार में हाथ मिला सकते हैं सुन कर एक बिहारी होने के नाते काफी दुख हुआ.

इसी लालू यादव ने बिहार जैसे गौरवशाली इतिहास वाले प्रदेश की इज्जत को मिट्टीपलीद कर दिया. जिस बिहार ने एक से बढ़ कर एक शूरमाओं और विभूतियों को जन्म दिया, वो बिहार सिर्फ लालू यादव के कुशासन के कारण गर्त में मिल गया. बिहार का कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति कभी लालू और नीतीश का साथ नहीं चाहेगा. अगर नीतीश ने लालू के साथ किसी तरह का कोई समझौता किया, तो उसका हाल मायावती की तरह हो जायेगा. मायावती के हारने की पीछे सबसे बड़ा कारण है सप्रंग गंठबंधन को बाहरी समर्थन प्रदान करना रहा, जिसके फलस्वरूप सप्रंग सरकार में हुए घोटाले में शामिल ना होने के बावजूद उन्हें उत्तरप्रदेश में हार का सामना करना पड़ा.

अनंत कुमार, कोलकाता

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