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यूपीएससी: सिस्टम बदले

II वजाहत हबीबुल्लाह II पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त delhi@prabhatkhabar.in यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा रैंकिंग के आधार पर अभ्यर्थियों के काडर और सेवा आवंटन पैटर्न में बदलाव के लिए सरकार का जो प्रस्ताव है, वह ठीक तो है, लेकिन अन्य सुधार भी जरूरी हैं. चयनित कैंडिडेट की तरबियत (प्रशिक्षण) के तरीके में भी बदलाव […]

II वजाहत हबीबुल्लाह II
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त
delhi@prabhatkhabar.in
यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा रैंकिंग के आधार पर अभ्यर्थियों के काडर और सेवा आवंटन पैटर्न में बदलाव के लिए सरकार का जो प्रस्ताव है, वह ठीक तो है, लेकिन अन्य सुधार भी जरूरी हैं. चयनित कैंडिडेट की तरबियत (प्रशिक्षण) के तरीके में भी बदलाव जरूरी है.
इसी सिलसिले में बीते दिनों पीएमओ ने यूपीएससी को सुझाव दिया है कि अभ्यर्थियों को परीक्षा रैंक के आधार पर नहीं, बल्कि फाउंडेशन कोर्स के नंबरों के आधार पर उन्हें काडर और सेवा क्षेत्र दिया जाये. अभी तक यूपीएससी की परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर सफल अभ्यर्थियों को काडर और सेवा क्षेत्र दिया जाता है, फिर उन्हें फाउंडेशन कोर्स के लिए भेजा जाता है. आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस सहित कुल दो दर्जन सेवा क्षेत्र हैं, जहां यूपीएससी एग्जाम में आये रैंक के आधार पर ही यह तय होता है कि किसे कौन सा काडर और सेवा दी जायेगी.
यूपीएससी में कुछ बदलावों को लेकर आये सुझाव पर हमें विचार करने की जरूरत है. क्योंकि सिर्फ एक परीक्षा के पास कर लेने के आधार पर कैंडिडेट का काडर और सेवा क्षेत्र तय कर देना, मैं समझता हूं यह ठीक नहीं है. फाउंडेशन कोर्स के जरिये अच्छी तरबियत और तजुर्बा हासिल करने के बाद अभ्यर्थी खुद भी समझ सकते हैं कि वे क्या चुनना पसंद करेंगे और किस क्षेत्र में जाना चाहेंगे.
इस ऐतबार से, अगर अभ्यर्थियों को यह मौका दिया जाये कि परीक्षा पास करने के बाद प्रशिक्षण केंद्र में अच्छेएवं तजुर्बेकार लोगों के सानिध्य और उनके तजुर्बे के तहत अच्छी तरह सीखकर ही किसी सेवा में आने की राह चुनें, तो यह बेहतर होगा. मसलन, अगर कोई अभ्यर्थी यह चाहता हो कि उसे आईएएस मिले, लेकिन रैंकिंग के बाद बनी मेरिट के हिसाब से उसे आईआरएस मिल जाता है. वहीं कोई अभ्यर्थी आईएफएस चाहता है, लेकिन उसे आईपीएस मिल जाता है. अगर फाउंडेशन कोर्स के बाद यह तय हो, तो अभ्यर्थी ऐसी परेशानी से बच जायेगा.
फाउंडेशन कोर्स तीन महीने का होता है. महज इन तीन महीनों में ही अभ्यर्थी अपने भविष्य की राह चुन लेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, यह जरूरी है कि जब हम काडर आवंटन का तरीका बदल रहे हैं, तो इसका पूरा सिस्टम भी बदलें, ताकि आगे आनेवाले समय में उनकी तरबियत और उनके काडर एवं सेवा क्षेत्र को लेकर किसी की पसंद या नापसंद का कोई मामला न बने और उनकी काबिलियत भी पद के आवंटन का आधार बने.
अब तक जिस तरह से परीक्षा पैटर्न चल रहा है, उससे काम नहीं चल सकता. सुधार का यह काम लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के जरिये किया जा सकता है और अभ्यर्थियों को बेहतरीन तरबियत दी जा सकती है, ताकि वे प्रशासनिक सेवाओं के क्षेत्र में अपने काम और अपनी जिम्मेदारी को लेकर पूरी तरह से परिपक्व हो सकें.
दूसरी बात यह है कि लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी के साथ ही सरकार को अपनी तरफ से भी कुछ तवज्जो देनी पड़ेगी, और यह देखना पड़ेगा कि जो अभ्यर्थी वहां तरबियत हासिल कर रहा है, उसकी क्षमता क्या है और वह किस सेवा में जाने लायक है.
सरकार उन्हें तरबियत देकर उनकी काबिलियत का जायजा ले, उनमें जो कुछ कमियां या गलत अवधारणाएं मौजूद हैं, उन्हें दूर करने की कोशिश करे. मान लीजिये, अभी की व्यवस्था के हिसाब से अगर एक अभ्यर्थी को जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) का पद मिलता है, तो यह कोई जरूरी नहीं कि वह इस पद के लिए पूरी तरह से काबिल हो.
वहीं अभ्यर्थी का सब्जेक्ट भी मायने रखता है. कला विषय, विज्ञान विषय या वाणिज्य विषय, इन अलग-अलग विषयों में पढ़कर आनेवाले बच्चे अपनी-अपनी तरह की काबिलियत रखते हैं. प्रशिक्षण में इन बातों का ध्यान रखकर भी उनके कैरियर की दिशा तय हो सकती है.
जहां तक यह सवाल है कि फाउंडेशन कोर्स के बाद काडर और सेवाओं के आवंटन से मेरिट खत्म हो जायेगा, तो ऐसा नहीं है. यूपीएससी एग्जाम की रैंकिंग के आधार पर मेरिट तो बनेगी ही, जिसके आधार पर अभ्यर्थी चुनकर आयेंगे, लेकिन इसके आधार पर काडर और सेवाओं का आवंटन नहीं होगा.
इसी बात का प्रस्ताव पीएमओ ने दिया है. यही नहीं, एक अभ्यर्थी को काडर और सेवा क्षेत्र आवंटित किये जाने के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसे हमेशा के लिए प्रशिक्षण से मुक्त कर दिया जाये या उसे फिर कभी किसी प्रशिक्षण की जरूरत ही नहीं है.
बल्कि, हर 10-15 साल में उसके लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि नये जमाने की बढ़ती नयी तकनीकों और नयी-नयी प्रशासनिक चुनौतियांे से मुकाबला करने के लिए अधिकारी खुद को हमेशा नया बनाये रखें. ज्वाॅयनिंग के बाद जो तकनीकी प्रशिक्षण मिलता है और अभ्यर्थी उस वक्त जितना जानता है, कोई जरूरी नहीं कि पांच-दस साल बाद भी उसी तकनीक के आधार पर काम करता रहे.
दौर बदलेगा, तकनीकी बदलेगी, समाज बदलेगा, राजनीति बदलेगी, नीतियां और मूल्य बदलेंगे, तो जाहिर है, इन सबके लिए सिविल सेवा के अधिकारी को भी खुद को बदलना होगा. इसलिए, सिविल सेवा क्षेत्रों से जुड़े अधिकारियों के चयन और प्रशिक्षण में बहुत कुछ बदलाव किये जाने की जरूरत है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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