परसेंट मुक्त भारत की तरफ!

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार सीबीएसई उर्फ सेंट्रल बोर्ड आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन की कक्षा 12 का रिजल्ट सामने है. आफतें कई हैं, उन बच्चों के लिए, जिनके नब्बे परसेंट से ऊपर न आये और साठ परसेंट से कम ना हुए. न नब्बे से ऊपर न साठ से कम, यह कैटेगरी बहुत फंसती है. ना तो इतनी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 28, 2018 7:21 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

सीबीएसई उर्फ सेंट्रल बोर्ड आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन की कक्षा 12 का रिजल्ट सामने है. आफतें कई हैं, उन बच्चों के लिए, जिनके नब्बे परसेंट से ऊपर न आये और साठ परसेंट से कम ना हुए. न नब्बे से ऊपर न साठ से कम, यह कैटेगरी बहुत फंसती है.

ना तो इतनी काबिल मानी जाती है कि इनसे आईएएस वगैरह में आने की उम्मीद रखी जाये और न यह कैटेगरी इतनी नालायक मानी जाती है कि घर वाले सोच लें, चलो कुछ न हो पायेगा, तो नेतागिरी में चला जायेगा.

अर्धनालायक और अर्धकाबिल की कैटेगरी है- न नब्बे से ऊपर ना साठ से कम. जिस फैमिली में मम्मी-पापा दोनों की 12वीं क्लास की परसेंट मिलाकर भी नब्बे न बैठती है, वहां भी बच्चे डपटे जाते हैं कि 95 परसेंट से कम क्यों आये.

ऐसे पेरेंट्स को अलग तरकीब से समझाना पड़ता है. मैंने इन्हें बताया कि देखिये वर्ल्ड फेमस होने के लिए परसेंट नहीं काम देखे जाते हैं. अब बताइए कोई पूछ रहा है क्या नीरव मोदी की परसेंट, बंदे ने अरबों-खरबों पार कर दिये.

कोई पूछता है क्या कि माल्याजी के कक्षा 12 में कितने परसेंट थे. माल्या उन बैंक अफसरों को चूना लगाकर ब्रिटेन में मजे कर रहे हैं, जिन अफसरों के कक्षा 12 में नब्बे परसेंट आये थे, और जिन्होंने बैंक अफसरी की परीक्षा पास की थी. ब्रिटेन में भी बहुत पढ़े-लिखे वकील माल्या से फीस लेकर उनका केस लड़ते हैं और माल्याजी अगली शादी और क्रिकेट मैचों में व्यस्त रहते हैं.

परसेंट में क्या धरा है, कामों पर ध्यान लगाना चाहिए. बहुत पढ़-लिखकर आदमी फेमस नहीं हो पाता है.

पढ़-लिखकर बंदा बहुत ज्ञानी हो जाता है और उसे समझ में आ जाता है कि कुछ बोलना बेकार है. देश के भूतपूर्व पीएम मनमोहन सिंहजी बहुत ही ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, हमने देखा है कि वह आम तौर पर शांत रहते हैं.

महान अभिनेता बलराज साहनीजी बहुत पढ़े-लिखे थे, बीबीसी में काम किया. प्रोफेसरी की, फिर एक्टिंग में गये. धर्मेंद्रजी की पढ़ाई-लिखाई परसेंट वगैरह के बारे में दुनिया कम जानती है. जितना नाम धर्मेंद्रजी ने कमाया उतना साहनीजी ना कमा पाये. मैं जट यमला पगला दीवाना- जैसा गाना धर्मेंद्रजी गा सकते थे, पर साहनीजी पर सूट ना करता यह गाना.

इसलिए पढ़ाई-लिखाई को अनावश्यक महत्व दिया जाना बंद होना चाहिए और 12 के रिजल्ट के बाद बच्चों से उनके परसेंट पूछने का चलन भी बंद होना चाहिए. हम सबको परसेंट मुक्त भारत की ओर अग्रसर होना चाहिए. स्किल इंडिया के दौर में परसेंट पूछना स्किल की बेइज्जती खराब करने जैसा है.

स्किल इंडिया में बंदा कोई कायदे की स्किल पकड़ ले, फिर काहे की परसेंट. वैसे मुझे एक नौजवान स्किल इंडिया से भी नाराज दिखा, वह बोला- स्किल इंडिया में असली स्किल नहीं सिखायी जा रही कि कैसे नीरव मोदी बैकों से अरबों की रकम लेकर फरार हो गया, यह स्किल क्यों नहीं सिखायी जाती.

मैंने निवेदन किया- यह तो महा-स्किल है, महा-स्किल कोई नहीं सिखाता, हरेक को खुद ही सीखनी पड़ती है.

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