स्वास्थ्य पर जोर

बीते ढाई दशकों में (1990 से 2016 तक) देश ने आर्थिक मोर्चे पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता के मामले में हमारी प्रगति कतई संतोषजनक नहीं है. चिकित्सा विज्ञान की सम्मानित शोध पत्रिका ‘द लांसेट’ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 26 वर्षों में दुनिया के 195 देशों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 28, 2018 7:22 AM

बीते ढाई दशकों में (1990 से 2016 तक) देश ने आर्थिक मोर्चे पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता के मामले में हमारी प्रगति कतई संतोषजनक नहीं है. चिकित्सा विज्ञान की सम्मानित शोध पत्रिका ‘द लांसेट’ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 26 वर्षों में दुनिया के 195 देशों की सूची में 153 से सिर्फ 145 स्थान पर पहुंच सका है. इस अवधि में हमारे प्रदर्शन में महज 16.5 अंकों की बढ़ोतरी हुई, जबकि वैश्विक औसत 54.4 अंकों का है.

इन ढाई दशकों में अनेक सरकारें केंद्र और राज्यों में रहीं, पर वादे और घोषणाओं को ठीक से अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है. स्वास्थ्य के मद में भारत अपने कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का सिर्फ 3.9 फीसदी खर्च करता है. अगर सरकारी खर्च को देखें, तो यह सवा एक फीसदी से भी कम है. सरकारी चिकित्सा और जांच केंद्रों की संख्या कम है और उनकी हालत भी खराब है. देश की बड़ी आबादी गरीब और निम्न आय वर्ग से है. उसकी आमदनी के लिहाज से निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद महंगी हैं.

इसका नतीजा यह है कि हम न सिर्फ चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों से पीछे हैं, बल्कि पड़ोसी बांग्लादेश और गरीब सूडान की स्थिति भी बेहतर है. मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में स्वास्थ्य के आवंटन में पांच फीसदी की बढ़त हुई है, पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत 2025 तक सरकारी खर्च को जीडीपी के 2.5 फीसदी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगामी सात सालों तक 20 फीसदी की बढ़त की दरकार है. उल्लेखनीय है कि जीडीपी के अनुपात में स्वास्थ्य पर खर्च का वैश्विक औसत छह फीसदी है.

हाल में स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में सरकार के संकल्प को दोहराते हुए कहा कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत प्रयास तेज किये गये हैं. विश्व की ऐसी सबसे बड़ी योजना के जरिये 10 करोड़ परिवारों के 50 करोड़ सदस्यों को पांच लाख रुपये के बीमा देने का लक्ष्य रखा गया है. राष्ट्रीय नीति में चिकित्सा केंद्र बनाने और सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के इरादे भी हैं.

बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली की दिशा में कार्यरत विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि दुनियाभर में लोगों तक सुविधाओं और संसाधनों की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में सार्वभौमिक सुरक्षा की अवधारणा शानदार हैं, लेकिन इसके साथ ही प्राथमिक चिकित्सालय और प्रयोगशाला की जरूरत भी है. खासकर ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में तो बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी है.

वर्ष 2015 में भारत समेत कई देशों ने 2030 तक अपनी आबादी को समुचित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने का संकल्प लिया, लेकिन अब तक के आधे-अधूरे प्रयास इंगित करते हैं कि इस लक्ष्य को पूरा कर पाना संभव न होगा. सरकार और संबद्ध विभागों को अपनी कोशिशों में तेजी लाने की जरूरत है.

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