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सत्ता खोने के भय से बंधी भीड़

II तरुण विजय II पूर्व राज्यसभा सांसद tarun.vijay@gmail.com कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को बधाई. आशा है वह अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर जो गंभीर आरोप लगाते रहे और सिद्धारमैया पर कर्नाटक बर्बाद करने की जिम्मेदारी डालते रहे, उन सब से बेहतर और कारगर सरकार दे सकेंगे. उनके शपथ ग्रहण समारोह को भविष्य में […]

II तरुण विजय II
पूर्व राज्यसभा सांसद
tarun.vijay@gmail.com
कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को बधाई. आशा है वह अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर जो गंभीर आरोप लगाते रहे और सिद्धारमैया पर कर्नाटक बर्बाद करने की जिम्मेदारी डालते रहे, उन सब से बेहतर और कारगर सरकार दे सकेंगे. उनके शपथ ग्रहण समारोह को भविष्य में मोदी विरोधी एकता दिवस के रूप में मनाया जा सकता है.
वे तमाम दल, जो कल तक एक-दूसरे को मनभर कर गालियां दे रहे थे, एक साथ आ खड़े हुए हैं. मकसद सरकार बेहतर रूप से चलाना या कोई सामूहिक जन-विकास कार्यक्रम नहीं था, बल्कि केवल मोदी विरोध और भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है.
यह भारतीय राजनीति के लिए कोई नयी बात नहीं है. तीसरा मोर्चा भारतीय सार्वजनिक संवाद और चर्चाओं का प्राय: प्रहसन-पर्व बना रहा है. इसे एक अच्छा और दिलचस्प फोटो का अवसर भी कहा जाता है.
ममता दीदी, बहन मायावती जी, सोनिया जी, अरविंद भैया, चंद्रबाबू से लेकर बचे-खुचे खंडहरों को समेट रहे सीताराम येचुरी, बिहार के तेजस्वी भी एक साथ दिखे. जिनके पास कुछ राजनीतिक बल है, वैसे उमर अब्दुल्ला अलग रहे. नवीन पटनायक ने किनारा कर लिया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव एक दिन पहले ही बेंगलुरु आकर कुमारस्वामी को शाल पहना गये- अगले दिन उन्हें किसी मीटिंग में रहना था.
तो, फोटो तो अच्छी बन गयी. एक अकेले नरेंद्र मोदी के डर ने इन तमाम छोटे बड़ों को साथ ला बिठाया. डर इतना कि नेता कोई हो-न-हो, किसी राज्य में एकाध विधायक भी हो-न-हो, पर सर्दी आते ही छोटे से कंबल में आ सिमटने की कोशिश करते ठंड से कंपकंपाते लोगों जैसा दृश्य दिखाया- चुनाव सर पर आते ही हार के डर से भयाक्रांत विपक्षी नेता एक मंच पर आ सिमटे.
सिंह की गर्जना और उसके विराट प्रभाव का मुकाबला सिंह की शक्ति से ही किया जा सकता है. भिन्न-भिन्न आकार प्रकार और विचार के कायाधारी सत्ता की गोद से एकजुट होकर जितनी भी जोर से आवाज निकालें या धूम-धड़ाका करें, वे गर्जना और प्रभाव का विकल्प नहीं बन सकते.
कर्नाटक में जो हुआ, वह विजयी लोगों की सफलता का उत्सव नहीं, बल्कि परास्त एवं जनता द्वारा अस्वीकार कर दिये गये परस्पर विरोधी दलों की सत्ता-सुख की आकांक्षा का तमाशा भर था.
क्या ये लोग भूल पायेंगे कि राज्य के चुनाव में जेडीएस व कांग्रेस को अपने पिछले रिकाॅर्ड की तुलना में मुंह की खानी पड़ी और भाजपा सबसे अधिक सीटें ले कर दोनों से कहीं आगे रही? जो दल तीसरे स्थान पर पिछड़ गया, वह सत्ताधारी दल बने और जो सबसे ज्यादा सीटें पाये, वह विपक्ष में बैठे – यह लोकतंत्र और जनादेश का सम्मान कहा जायेगा?
पर, सत्ता अांकड़ों का खेल है और जिसे विपक्षी एकता कहा जा रहा है, जिसमें एकता का एकमात्र कारण अपने अस्तित्व को बचाते हुए भाजपा के चक्रवर्ती विस्तार को रोकना है, जनता से छल और चुनावी-विलास का उदाहरण है.
बेशक विपक्ष चाहिए , पर सशक्त, मुखर और असमझौतावादी विपक्ष चाहिए. यह लोकतंत्र की मांग तथा संवैधानिक संस्थाअों की सुरक्षा व दीर्घजीविता के लिए जरूरी है. इसके लिए 2019 का डर नहीं, बल्कि अपने तरीके, अपने सर्वसम्मत कार्यक्रम के जरिये जन-विकास एवं भारत-गौरव बढ़ाने का इच्छा बल चाहिए. यदि ये तमाम दल न्यूनतम स्वीकृत एजेंडा, एक सर्वसम्मत नेतृत्व और सीटों के बंटवारे पर स्वीकार्य फार्मूले के साथ मैदान में उतरें, तो निस्संदेह सत्तारूढ़ दल को चुनौती दे ही सकते हैं, जनता के सामने भी साफ-सुथरा विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं.
पर, जिसे विपक्षी एकता कह जा रहा है, उसमें किसी एक बिंदु पर भी मतैक्य नहीं है, जिसका सरोकार 2019 से पूर्व चुनावी एजेंडे पर सहमति से हो. ये सब प्राय: एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. सबका सर्वसम्मत एजेंडा होगा ‘मोदी हराओ’ और चुनाव के बाद जिसे जितनी सीटें मिलेंगी, उसके आधार पर आंकड़ों का कुनबा जोड़ेंगे.
इसे वे विपक्षी एकजुटता कहते हैं. एकजुटता सिर्फ इस बात पर है कि चुप रहेंगे, चुनावों में धांधली आैर टिकट की नीलामी चलने देंगे तथा अराजक शासन पद्धति पर खामोशी ओढ़ेंगे. पहले गालियां देंगे, फिर गलबहियां डालेंगे. जनता मूक बनी ताका करेगी, जैसा कि कर्नाटक में हुआ.
यह भयाक्रांत लोगों की भीड़ जन-गण-मन का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती. देश बहुत मुश्किल से आर्थिक आतंकवाद से उबरा है. वैश्विक राजनीति में बहुत लंबे दौर के बाद भारत सशक्त, सबल और समर्थ राष्ट्र के रूप में उभरा है.
ऐसे समय में देश के विकास के एजेंडे की जगह परस्पर विरोधियों का सत्ता की गोंद से चिपकना किस भविष्य का द्योतक है? इसमें चर्च द्वारा मोदी सरकार को हटाने के लिए प्रार्थनाअों की अपील और भी भयानक हो उठती है, जिसे ‌‌वैटिकन के षड़यंत्र का हिस्सा माना जा रहा है.
क्या इस तमाम परिदृश्य को भारत तोड़नेवाली उन्हीं ताकतों का पुन: प्रकटीकरण माना जाये, जो गजनवी के सोमनाथ विध्वंस का कारण बनीं थीं? ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसा न हो. यह देश देशवासियों के सामूहिक मन से चले.

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