पाकिस्तान की नीयत

कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सरकार ने फिलहाल अपना अभियान रोक लिया है. पवित्र रमजान महीने में शांति एवं सद्भाव के संदेश के तौर पर यह कदम उठाया गया है. लेकिन घाटी में अमन बहाली का मसला तीन तरफा है. किसी सरकारी पहल के परवान चढ़ने की एक शर्त तो यह है कि अलगाववादी रजामंदी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2018 7:37 AM

कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सरकार ने फिलहाल अपना अभियान रोक लिया है. पवित्र रमजान महीने में शांति एवं सद्भाव के संदेश के तौर पर यह कदम उठाया गया है. लेकिन घाटी में अमन बहाली का मसला तीन तरफा है. किसी सरकारी पहल के परवान चढ़ने की एक शर्त तो यह है कि अलगाववादी रजामंदी दिखाएं. अतिवादियों को पाकिस्तान से मिल रही मदद को रोकना भी जरूरी है.

इस सियासी सच को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान अत्यंत सराहनीय है कि पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कुछ पहल करे, क्योंकि भारत द्विपक्षीय वार्ता के लिए हमेशा तैयार है.

दुर्भाग्य है कि पाकिस्तानी रुख में नरमी के संकेत नहीं हैं. इस साल के साढ़े चार महीने में पाकिस्तान की ओर से युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले तिगुना इजाफा हुआ है. बीते साल ऐसी 110 घटनाएं हुई थीं, पर इस साल यह आंकड़ा 300 के पार पहुंच रहा है. ऐसी घटनाओं का सीधा रिश्ता आतंकवादियों की घुसपैठ से है.

दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने की कोशिशों में ऐसी वारदातें बाधक हैं. पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर यह कभी स्वीकार नहीं करता है कि कश्मीर में जारी आतंकवादी घटनाओं के पीछे उसका हाथ है. विकसित देशों का साथी बने रहने और आर्थिक मदद हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसे खुद को आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध में साझीदार बताकर पेश करने की जरूरत पड़ती है.

साथ ही, वह अफगानिस्तान और कश्मीर में चोरी-छिपे आतंकी गतिविधियों को शह भी देता रहता है. उसके इस पाखंड को दुनिया के सामने उजागर करने में हाल के सालों में भारत को कामयाबी भी मिली है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के हाल के बयान से भी पाकिस्तान की यह दोरंगी चाल बेनकाब हुई है.

आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की कथनी और करनी के इसी अंतर पर चोट करते हुए गृहमंत्री ने कहा है कि पाकिस्तान आगे बढ़े और आतंकवादियों के खिलाफ भारत के साथ मिलकर एक साझा अभियान चलाये. एक तरह से देखें, तो गृहमंत्री का बयान पाकिस्तान को संकेत है कि कश्मीर के मसले पर भारत अब अपनी पुरानी नीति-रीति पर नहीं चलनेवाला. पुरानी रीति थी कि कश्मीर में पाकिस्तान की करतूतों के बावजूद अन्य द्विपक्षीय मसलों पर परस्पर विश्वास बहाल करने के प्रयास होते थे. जियाउल हक के जमाने में ‘क्रिकेट डिप्लोमेसी’ और मुशर्रफ के वक्त में ‘डिनर डिप्लोमेसी’ इसी रवैये के प्रमाण हैं. लेकिन मोदी सरकार ने इसे बदला है.

पाकिस्तान के लिए अब संकेत स्पष्ट हैं कि वह कश्मीर मसले पर भारत के साथ भयादोहन का बरताव अब नहीं कर सकता है. जब तक वह अपनी कारगुजारियों से बाज आने के संकेत नहीं देता, तब तक दोनों देशों के बीच भरोसा बनाने के विकल्पों पर सोचना मुमकिन नहीं है. गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है और दक्षिण एशिया में बदलते शक्ति-समीकरण के अनुकूल कदम उठाने की जिम्मेदारी अब उसकी बनती है.

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