सेमल और आक
II क्षमा शर्मा II वरिष्ठ पत्रकार सुबह के पांच बजे थे, मगर भारी उमस थी. लगता था कि हवा भी गर्मी के डर से कहीं जा छिपी है. ऊपर से मक्खी-मच्छरों की फौज लगातार हमला बोल रही थी. सोसाइटी परिसर में घूमते हुए अचानक लगा कि सिर के ऊपर ढेर सारी सफेद तितलियां उड़ रही […]
II क्षमा शर्मा II
वरिष्ठ पत्रकार
सुबह के पांच बजे थे, मगर भारी उमस थी. लगता था कि हवा भी गर्मी के डर से कहीं जा छिपी है. ऊपर से मक्खी-मच्छरों की फौज लगातार हमला बोल रही थी.
सोसाइटी परिसर में घूमते हुए अचानक लगा कि सिर के ऊपर ढेर सारी सफेद तितलियां उड़ रही हैं. इतनी सारी सफेद तितलियां पहले तो कभी नहीं देखीं. पास पहुंची तो राज समझ में आया. लंबे-ऊंचे सेमल पर लगे फल फट गये थे और उनसे रूई उड़ रही थी जो तितलियों सी लग रही थी. जितने सुंदर और आकर्षक सेमल के फूल उतनी ही नरम इनकी रूई.
लेकिन अक्सर इसे तकियों या रजाई में नहीं भरा जाता. कहते हैं बहुत गरम होती है. कवियों ने लिखा है कि सेमल के फल में तोता इस आशा से चोंच मारता है कि फल का गूदा खायेगा या रस पीयेगा, मगर बेचारे की चोंच में रूई भर जाती है.
फिर कुछ दिन बाद मैं हरियाणा से लगे बिजवासन में एक साहित्यिक आयोजन में गयी थी. जिस जगह मुझे जाना था, वहां पहुंचने के लिए खेत ही खेत पार करने पड़ रहे थे.
ऐसे में जिस अद्भुत दृश्य से सामना हुआ वह था, खेतों और सड़कों के किनारे कतार से लगे आक के अनगिनत पौधे. बचपन में गांव छोड़ने के बाद इतने आक के पौधे दिल्ली के आसपास पहली बार देखे थे. आक के पौधों से भी रूई झड़कर चारों ओर उड़ रही थी. कुछ ही दिनों में दो पेड़ों से इस तरह रूई का उड़ना देखना, कमाल लगा.
जैसे इन पेड़ों की रूई को भी पता चल गया कि सर्दी कहलाती ये भी रूई है, मगर कपास की रूई से बिल्कुल अलग होती है. बचपन में जब गलती से आक के पत्ते को तोड़ते वक्त दूध हाथ में लग जाता था, तो मां फौरन हाथ धोने को कहती थी. उसका कहना था कि दूध अगर आंख में लग जाये, तो आंख की रोशनी चली जाती है.
इन पेड़-पौधों के लाभ-हानि के बारे में सिर्फ मां को ही नहीं, आम घरेलू महिलाओं को बहुत जानकारी होती थी. आक के औषधिमूलक बहुत से उपयोग हैं, जिसे हमारी दादी-नानियां बहुत अच्छी तरह से जानती रही हैं. उनका यह व्यावहारिक ज्ञान सबके बहुत काम भी आता था.
आश्चर्यजनक रूप से इतने लंबे, ऊंचे सेमल और जरा से आक के पौधों के फल लगभग एक जैसे दिखते हैं. इन दोनों की रूई के बारे में कहा जाता है कि यह बेहद गरम होती है. सेमल के चटख लाल फूल और आक के सफेद बैंजनी गुलाबी फूल देखने में बहुत सुंदर लगते हैं.
आज समय ने हमें हमारी वनस्पतियों से कितना दूर कर दिया है कि किसी युवक या बच्चे से पूछो तो वह इन्हें पहचान ही न सके. ज्यों-ज्यों तकनीक ने हमें संसार से जोड़ा है, दुनिया को गांव कहा जाने लगा है, वहां हम बिल्कुल अपने नजदीक की चीजों से बहुत दूर होते जा रहे हैं.
उनकी उपयोगिता को भूलते जा रहे हैं. ये बातें हमारे पर्यावरण और परिवेश के लिए भी घातक हैं. मात्र गमलों में लगाकर ही पौधों की, पेड़ों की, फूलों की रक्षा नहीं की जा सकती.