सवा अरब कदम आगे बढ़ाने की शपथ
।। तरुण विजय।। (राज्यसभा सांसद, भाजपा) शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ और हामिद करजई को बुला कर नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि सरकार चलाने के लिए वे किसी औपचारिक समारोह या सिर्फ तथाकथित विशेषज्ञों के परामर्श पर निर्भर नहीं रहेंगे. मोदी की ‘मिसाइल’ अर्थात् उम्मीद की तुरंत अनुपालना गजब का प्रभाव छोड़ती है. […]
।। तरुण विजय।।
(राज्यसभा सांसद, भाजपा)
शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ और हामिद करजई को बुला कर नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि सरकार चलाने के लिए वे किसी औपचारिक समारोह या सिर्फ तथाकथित विशेषज्ञों के परामर्श पर निर्भर नहीं रहेंगे. मोदी की ‘मिसाइल’ अर्थात् उम्मीद की तुरंत अनुपालना गजब का प्रभाव छोड़ती है. मोदी ऐसे अद्भुत जीवट और निर्णायक ताकत के धनी हैं कि लोगों को लगने लगा है कि वे शायद परा-मानवीय शक्ति से युक्त राजपुरुष हैं. वरना उनके विरोधियों और तथाकथित सेकुलरों ने जो छवि बनायी हुई है, उसके अनुसार किसने सोचा होगा कि मोदी सबसे पहले नवाज शरीफ को बुलाएंगे? यह उनके प्रबल आत्मविश्वास को भी दिखाता है. सार्क देशों में पाकिस्तान भी है. उसे बुलाने का अर्थ यह कतई नहीं हो सकता कि हम यह मान चले हैं कि पाकिस्तान सुधर रहा है, या सुधर गया है. एकांतिक रूप से पाकिस्तान की नीति को अगर देखा जाये, तो वह उसकी भाषा में ही उसको जवाब देनेवाली होगी.
अगर नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल और एनडीए के 29 सहयोगी संगठनों द्वारा स्वयं को नेता चुने जाते समय अपने उद्बोधन और मार्मिक, भावुक मातृभूमि भक्ति से पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, तो शपथ ग्रहण समारोह की विराटता से विश्व को अपने बारे में राय बदलने के लिए मजबूर कर दिया है. यह स्थिति तो तब है, जब औपचारिक रूप से सरकार का काम शुरू भी नहीं हुआ है. सरकार पदस्थापित होते ही सबसे पहले आर्थिक नीतियों को सुधारने के काम में लगेगी. मोदी-प्रभाव से पहले ही डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने लगा है. सोने का भाव कम हो रहा है. बाजार में अनुकूल हलचल बढ़ गयी है. पूंजी निवेश के लिए लोग आतुर दिख रहे हैं. और यदि प्रारंभ में व्यापक तौर पर ढांचागत निर्माण के क्षेत्र में पूंजी निवेश का सिलसिला शुरू हो गया, तो उसके प्रभाव से ही रोजगार के नये लाखों क्षेत्र खुलने शुरू हो जायेंगे तथा मंद पड़ा बाजार गति पकड़ने लगेगा. महंगाई पर अंकुश, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में स्थिरता, किसानों को उसके उत्पाद का उचित मूल्य देना, रेल यातायात में व्यापक परिवर्तन और सुधार तथा देश के सुदूरस्थ क्षेत्रों को अच्छे चार लेन एवं छह लेन वाले राजमार्गो से जोड़ना, तुरंत प्रभावी होनेवाले कदम होंगे.
इसके साथ ही एशिया और प्रशांत महासागरीय सुरक्षा का व्यापक फलक मोदी सरकार से विशेष ध्यान की मांग कर रहा है. यह क्षेत्र आज विश्व का सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण कूटनीति एवं समरनीति का क्षेत्र है. अगले सप्ताह सिंगापुर में एशिया-प्रशांत महासागरीय सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन भी हो रहा है. अब तक भारत ने अपने हितों की दृष्टि से इस क्षेत्र की सबसे अधिक अनदेखी की है. फलत: इस क्षेत्र की सुरक्षा का संतुलन चीन के पक्ष में झुक गया है. दक्षिणी चीन सागर में चीन की अवैधानिक दखलंदाजी तथा वियतनाम व फिलीपींस जैसे भारत के मित्र देशों को धमकाना भी यदि पर्याप्त नहीं था, तो चीन ने दक्षिण चीन सागर में भारत द्वारा ओएनजीसी विदेश के माध्यम से सेल की खोज के काम को भी रोका. यह क्षेत्र भारत के लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती भी है, पर अब तक हमारी इस बारे में कोई स्पष्ट नीति नहीं बन पायी है.
कश्मीर से छत्तीसगढ़ होते हुए उत्तर पूर्वाचल तक सुरक्षा का विषय मानो मोदी सरकार के आने की प्रतीक्षा कर रहा था. नक्सलवादी हिंसा में अब तक 12 हजार लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में सुरक्षा सैनिक हैं. करगिल में उतने सैनिक नहीं शहीद हुए, जितने माओवादियों द्वारा भारत के भीतर हुए हैं. कश्मीर अलगाववाद तथा भारत विरोधी देशद्रोहियों की हिंसा का शिकार है और भाजपा वहां से निर्वासित हिंदुओं की पुन: घर वापसी सुनिश्चित करने के साथ-साथ धारा 370 खत्म करने के लिए भी प्रतिबद्ध है. इसके लिए संकट में आवश्यक दो तिहाई बहुमत जुटाना असंभव नहीं तो तनिक कठिन इसलिए लगता है, क्योंकि राज्यसभा के आंकड़े फिलहाल एनडीए के पक्ष में नहीं हैं.
उत्तर पूर्वाचल बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इजाक मुइवा गुट तथा खापलांग गुट) के साथ-साथ 36 विदेशी निष्ठावाले आतंकवादी गुटों की चपेट में है. इसी कारण समूचे पूर्वाचल का विकास तो रुका ही है, पूर्वी एशिया की ओर अर्थव्यवस्था के द्वार खुलने की संभावना भी क्षीण हो गयी है. आतंकवाद के इन सभी गुटों को कुचल कर, पर्यटन एवं औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर न केवल स्थानीय नौजवानों को रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकते हैं, बल्कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में भी उत्तर पूर्वाचल एवं छत्तीसगढ़ जैसे जनजातीय क्षेत्रों का असाधारण योगदान हो सकता है. बांग्लादेशी मुसलिम घुसपैठियों की वापसी एक विकराल और जटिल प्रश्न है. इन घुसपैठियों की पहचान, उनको रोकना और वापस भेजना जहां इस समस्या का एक पक्ष है, वहीं भारत-बांग्लादेश सीमा को प्रभावी रूप से घुसपैठिया प्रतिरोधक बनाना एक गंभीर चुनौती है. उधर, दक्षिण में तमिल मछुआरों की समस्या कभी भी विस्फोटक और विकराल रूप ले सकती है. यह इस बात का भी उदाहरण है कि मजबूत क्षेत्रीय दलों द्वारा किस प्रकार राज्य की समस्या से विदेश नीति को प्रभावित किया जाता है. लेकिन चूंकि जयललिता सरकार का मोदी सरकार के प्रति मित्रवत व्यवहार है, इसलिए इसका समाधान ढूंढा जाना कठिन नहीं होगा.
ये तो कुछ बड़े पश्न हुए, लेकिन भ्रष्टाचार से बोङिाल एवं थका हुआ प्रशासनिक तंत्र, राजनेताओं का जमावड़ा, इंतजार करवा-करवा कर न्याय को अन्याय में बदलनेवाली न्यायिक प्रणाली नयी सरकार के सामने इमरजेंसी वार्ड में भरती रोगी की तरह हैं. यदि इनका समाधान होगा, तो न केवल जनता को तुरंत राहत मिलेगी, बल्कि बीस करोड़ नौजवानों को कुशलता एवं व्यावसायिक निपुणता का प्रशिक्षण देने के वायदे को पूरा करना संभव होगा. मोदी की शपथ जब तक हर भारतीय को उसी उत्साह और जिद के साथ भारत की तकदीर बदलने की शपथ दिलानेवाली साबित नहीं होगी, जिस उत्साह से मतदाताओं ने मोदी सरकार को बनाने के लिए वोट दिया, तब तक भारत का भाग्योदय अधूरा रहेगा. सवा अरब भारतीय एक साथ चलें, तो सवा अरब कदमों का फासला एक साथ तय हो जायेगा. तो फिर सारी दुनिया भी अगर एकजुट हो जाये, तो भारत को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पायेगा.