गांधीजी के जमाने में चैनल होते तो..

।। सत्य प्रकाश चौधरी।। (प्रभात खबर, रांची) कुछ दिन पहले हम लोग कैंटीन में बैठ कर टीवी समाचार चैनलों के मौजूदा राजनीति पर असर के बारे में चर्चा कर रहे थे. इस दौरान मेरे साथी आनंद मोहन ने एक बड़ी दिलचस्प बात कही- सोचिए कि अगर गांधीजी के जमाने में टीवी चैनल होते, तो क्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 23, 2014 4:43 AM

।। सत्य प्रकाश चौधरी।।

(प्रभात खबर, रांची)

कुछ दिन पहले हम लोग कैंटीन में बैठ कर टीवी समाचार चैनलों के मौजूदा राजनीति पर असर के बारे में चर्चा कर रहे थे. इस दौरान मेरे साथी आनंद मोहन ने एक बड़ी दिलचस्प बात कही- सोचिए कि अगर गांधीजी के जमाने में टीवी चैनल होते, तो क्या वह गांधीजी बन पाते? उन्होंने कुछ काल्पनिक दृश्य पेश किये, जिनमें मैं थोड़ा-बहुत जोड़-घटाव करके आपके सामने पेश कर रहा हूं :

दृश्य एक : चौरी चौरा में खूनी संघर्ष के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. वह दुखी थे कि उनके अनुयायियों ने अहिंसा के मंत्र का पालन नहीं किया. प्रायश्चित के लिए वह पांच दिन के उपवास पर चले गये. तभी टीवी रिपोर्टरों ने खबर देना छोड़ कर उनकी खबर लेनी शुरू की : जो जानें गयी हैं, उनकी जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या आप समझते हैं कि आपके इस उपवास से मारे गये लोग लौट आयेंगे? गांधीजी को लगा कि वह कई मन वजनी पत्थर के नीचे दब गये हैं.

दृश्य दो : गांधीजी अभी दांडी यात्र पर दो मील भी नहीं चले थे कि खबरिया चैनलों के रिपोर्टर कैमरों के साथ उन पर टिड्डी-दल की तरह टूट पड़े. सबने एकसाथ, सप्तम-सुर में सवालों की झड़ी लगा दी : गांधीजी, नमक बनाने की इस नौटंकी से क्या हासिल होगा? आपको क्या लगता है कि अंगरेज इससे डर जायेंगे? आप इकन्नी के नमक के लिए देश में अराजकता क्यों फैला रहे हैं? क्या ऐसा नहीं लगता कि आपको बात-बात पर सत्याग्रह करने की आदत पड़ गयी है? क्यों न इसे आपका एक और ‘पब्लिसिटी स्टंट’ मान लिया जाये? आखिरी सवाल तक आते-आते गांधीजी का हौसला बैठ गया.

दृश्य तीन : गांधीजी ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग कर रहे थे. एक रिपोर्टर को यह पता चला और वह दौड़ता-भागता अपने दफ्तर पहुंचा- ‘‘बॉस, जबरदस्त खबर है, वो बुड्ढा तो बड़ा रसिया निकला. दो-दो जवान लड़कियों के साथ सोता है.’’ इसके बाद तो ‘बापू’ को ‘आसाराम बापू’ बन जाने से कोई नहीं रोक सकता था. चैनल ने जबरदस्त प्रोमो बनाया- ‘महात्मा निकला रंगीला’. गांधीजी अपना सिर धुन रहे थे, ‘‘अरे भाई! कोई मेरे प्रयोग को समझता क्यों नहीं? मैं तो बस अपने संयम और ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहा था.’’

दृश्य चार : देश के बंटवारे की भूमिका तैयार हो गयी थी. गांधीजी इसे रोकने के लिए जी-जान से लगे थे. इस सिलसिले में वह कभी नेहरू से मिलते, कभी जिन्ना से, तो कभी माउंटबेटन से. चैनलों ने तीनों नेताओं के साथ उनकी तसवीरें लीं और टीवी के परदे पर तीनों तसवीरों को अलग-बगल लगाया. एंकर चीख रहा है- ‘‘गौर से देखिए. एक महात्मा के तीन चेहरे. आखिर किसके साथ खड़े हैं गांधीजी? जनता कैसे भरोसा करे ऐसे इनसान पर?’’ गांधीजी टीवी चैनल देख इतने निराश हुए कि बंगाल की यात्रा पर निकल पड़े.

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