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हिंसा की राजनीति

पश्चिम बंगाल के हालिया पंचायत चुनाव के दौरान शुरू हुआ हिंसा का सिलसिला बदस्तूर जारी है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ऊपर आरोप लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि अब तक उनके करीब 30 कार्यकर्ता और समर्थक मारे गये हैं. तृणमूल का भी कहना है कि उसके 13 लोगों […]

पश्चिम बंगाल के हालिया पंचायत चुनाव के दौरान शुरू हुआ हिंसा का सिलसिला बदस्तूर जारी है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ऊपर आरोप लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि अब तक उनके करीब 30 कार्यकर्ता और समर्थक मारे गये हैं.
तृणमूल का भी कहना है कि उसके 13 लोगों की हत्या हुई है. पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. सत्ता में चाहे कांग्रेस रही हो, वाम मोर्चा रहा हो या अभी तृणमूल का शासन हो, विरोधियों के दमन के लिए अक्सर पुलिस और आपराधिक गिरोहों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से जो कुछ बंगाल में हो रहा है, वह हर स्तर पर अपूर्व है.
पंचायत की 34 फीसदी सीटें तृणमूल ने निर्विरोध जीता, क्योंकि उसके आक्रामक कैडरों ने पुलिस-प्रशासन की शह पर विरोधी दलों के उम्मीदवारों को डरा-धमका कर बैठा दिया या फिर उन्हें नामांकन नहीं करने दिया.
यह मामला अभी अदालत में है. जहां मतदान हुए, वहां बड़े पैमाने पर धांधली हुई और अधिकतर सीटें तृणमूल के खाते में गयीं. ताजा घटनाओं में जिस तरह से दो लोगों की हत्या की गयी है, उससे साफ जाहिर है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार न सिर्फ अपराधियों पर अंकुश लगाने में विफल रही है, बल्कि हत्यारों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है. हमेशा लोकतंत्र की दुहाई देनेवाली ममता बनर्जी खुद ही माकपा की हिंसा का विरोध कर सत्ता में आयी हैं, लेकिन आज वह बिल्कुल वैसी ही राजनीति कर रही हैं.
इस हिंसा का स्वरूप विभत्स है. एक घटना में लाश को पेड़ पर लटकाकर लिख दिया गया कि भाजपा का समर्थन करने के कारण इसे मारा गया है. कुछ दिन पहले माकपा समर्थक दंपतियों को जिंदा जला दिया गया था. एक वीडियो में तृणमूल के किसी कार्यालय में एक महिला को खुलेआम अपमानित किये जाते देश ने देखा था
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंसा पर लगाम लगाने की कोशिश करने के बजाय मुख्यमंत्री और उनके दल के बड़े नेता दूसरी पार्टियों पर ही आरोप लगा रहे हैं. यह संभव है कि तृणमूल के अलावा अन्य पार्टियां भी आक्रामक हो रही हों, पर इन घटनाओं पर रोक लगाने का जिम्मा तो सरकार का ही है. ममता बनर्जी के विरोधियों के इस आरोप में दम दिखता है कि पुलिस और अन्य प्रशासनिक महकमों के अधिकारी-कर्मचारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं.
पिछले पांच दशकों में हजारों राजनीतिक हत्याओं का गवाह रहा बंगाल हिंसा के नये और नृशंस दौर में है, जहां हत्या के साथ अंग-भंग और बलात्कार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.
अगले साल आमचुनाव हैं और 2021 में राज्य विधानसभा के लिए मतदान होगा. यदि सरकार और विभिन्न पार्टियों ने लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का ख्याल नहीं रखा, तो आगामी दिनों में बंगाल से बुरी खबरों का दौर चलता रहेगा.

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