बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित रिम्स में नर्स-डाॅक्टरों की हड़ताल पर अब तक 25 निर्दोष मरीजों की मौत का कलंक लग चुका है. अराजकता का आलम यह है कि मरीजों को पुचकार कर इंजेक्शन व मरहम पट्टी करने वाली नर्सों के हाथों में लोहे के रड लहरा रहे थे.
जीवन की अंतिम घड़ी में भी उम्मीद की लौ जलाये रखने वाली बहनें आपातकालीन सेवा कक्ष से गर्भवती महिलाओं को धक्के मार निकाल रही थीं. किसी एक की गलती की सजा पूरे वर्ग को मिले, इस ओछे व्यवहार की उम्मीद इनसे कतई नहीं थी.
चिरकाल से नयी जिंदगी देने वाले जब किसी की मृत्यु का कारण बनते हैं, तो उन्हें भगवान का दर्जा देने वाले होंठों पर शक-सा होता हैं. अगर डॉक्टर और नर्स भी यहीं करने लगें, तो उन अराजक परिजनों और इनमें क्या अंतर रह जायेगा, जिनके व्यवहार को वजह मानकर ये हड़ताल पर गये?
मनोज पांडेय बाबा, चंदनक्यारी, बोकारो