प्रणब दा ने रचा इतिहास

IIतरुण विजयII पूर्व सांसद, राज्यसभा tarunvijay55555@gmail.com नागपुर में दो डॉक्टरों की कर्मस्थली है. एक डॉ भीमराव आंबेडकर, दूसरे डॉ केशव बलिराम हेडगेवार. एक ने जाति तोड़ी, तो दूसरे ने हिंदुओं की विचार-निद्रा तोड़ जनसंगठन की नयी पद्धति दी. आज उसी दूसरे डॉक्टर की कर्मस्थली में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वैचारिक अस्पृश्यता तोड़ी, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 8, 2018 1:35 AM
IIतरुण विजयII
पूर्व सांसद, राज्यसभा
tarunvijay55555@gmail.com
नागपुर में दो डॉक्टरों की कर्मस्थली है. एक डॉ भीमराव आंबेडकर, दूसरे डॉ केशव बलिराम हेडगेवार. एक ने जाति तोड़ी, तो दूसरे ने हिंदुओं की विचार-निद्रा तोड़ जनसंगठन की नयी पद्धति दी. आज उसी दूसरे डॉक्टर की कर्मस्थली में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वैचारिक अस्पृश्यता तोड़ी, जिसके भारतीय राजनीतिक जीवन में दूरगामी परिणाम होंगे.
आश्चर्य है कि जो लोग जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उनमें से कुछ तथाकथित सेक्युलर एवं विद्वान कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति के विवेक पर शक करने लगे हैं, क्योंकि उन्होंने आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार कर लिया. यह देश विविधताओं एवं इंद्रधनुषी वैचारिक भिन्नताओं का देश है.
यदि विचार भिन्नता सामाजिक अस्पृश्यता व शत्रुता में बदल दी जाये, तो देश के भीतर कितने ‘देश’ बन जायेंगे? रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री के बाद जिसने राष्ट्रपति का कार्यकाल अत्यंत गरिमा से पूर्ण किया हो, क्या उन्होंने यह निमंत्रण बिना सोचे-समझे स्वीकार किया होगा? राष्ट्रपति पद का निर्वहन करने के बाद क्या वे पूरे समाज के नहीं? विडंबना है कि जो लोग उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा आतंकवादी विचारों के संगठन पीएफआइ की सभा में केरल जाने को सेक्युलर मानते हैं, वे ही प्रणब दा के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने पर आपत्ति उठाते हैं.
भारत के सार्वजनिक जीवन में यह वैचारिक शत्रुता का भाव वामपंथियों और विदेशी मानस के कांग्रेसी नेतृत्व की देन है. यह भारतीय परंपरा नहीं. पांचजन्य के संपादक के नाते मैंने निरंतर सीपीआइ के महासचिव सी राजशेखर राव, एबी बर्धन, डी राजा, सैयद शहाबुद्दीन, मणिशंकर अय्यर और हेमवती नंदन बहुगुणा के विचारों को छापा. किसी ने यह नहीं कहा कि जो हमारी विचारधारा के विरुद्ध बोलते हैं, उनको पांचजन्य में स्थान क्यों मिले? पाठकों को याद होगा कि जब डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तो सबसे पहले मैं पांचजन्य के संपादक के नाते उनसे बातचीत की थी. जब वह पांचजन्य में छपी, तो हंगामा मच गया. लेकिन, मनमोहन सिंह जी ने कुछ नहीं कहा.
आरएसएस वैचारिक अस्पृश्यता में विश्वास नहीं करता. पचास के आसपास पंडित नेहरू अपनी पहली लंदन यात्रा पर गये, तो वहां के भारतीय मूल के नागरिकों ने उनकी पाकिस्तान नीति तथा हिंदुओं के प्रति भेदभाव के विरुद्ध लंदन में विरोध प्रदर्शन की योजना बनायी. उस समय आरएसएस के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने कहा कि भारत के बाहर देश के प्रधानमंत्री का सम्मान राष्ट्र का सम्मान है. उनके खिलाफ एक भी शब्द न बोला जाये. जो कहना है, भारत में आकर कहो.
पंडित नेहरू के समय 1962 का चीनी हमला हुआ. आरएसएस ने सैनिकों तथा नागरिकों की जो सहायता की, उसकी प्रशंसा में नेहरू सरकार ने संघ के स्वयंसेवकों को पूर्णगणवेश में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल किया था, जबकि उसी दौरान युद्ध के समय चीन का समर्थन करने के राष्ट्र-विरोधी कार्य के अपराध में 250 से ज्यादा कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार किया गया था.
आज आरएसएस द्वारा देश में 1.75 लाख सेवा प्रकल्प चलाये जा रहे हैं. जिसमें रक्त बैंक, नेत्र बैंक, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, कैंसर शोध एवं चिकित्सा केंद्र हैं. पिछले दिनों संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार के पूर्वजों के गांव कंदकुर्त्ती (तेलंगाना) स्थित उनके घर से नागपुर तक की यात्रा पर मुझे एक वृतचित्र बनाने का अवसर मिला. कंदकुर्त्ती में हेडगेवार वंश के छोटे-सामान्य घर को अब एक स्मारक का रूप देकर वहां केशव शिशु मंदिर चलाया जा रहा है, जहां हिंदू-मुस्लिम बच्चे एक साथ पढ़ते हैं.
कंदकुर्त्ती में 65 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम तथा 35 प्रतिशत हिंदू है. जलील बेग के परिवार के सभी बच्चे यहां पढ़ते हैं. वे बताते हैं कि पढ़ाई अच्छी है, कंप्यूटर भी सिखाते हैं, फीस भी कम है.संघ प्रेरित विज्ञानभारती के अध्यक्ष विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ विजय भाटकर हैं और इसरो के पूर्व निदेशक श्री माधवन नायर, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ अनिल काकोदकर जैसी विभूतियां उससे जुड़ी हुईं हैं.
मैं प्रणब दा को 30 वर्षों से जानता हूं. जब उन्होंने इंदिराजी के समय कांग्रेस छोड़ी, तो उनका पांचजन्य में इंटरव्यू मैंने लिया था. जब वे रक्षा मंत्री बने, तो उनके व्याख्यान अत्यंत सारगर्भित थे. वे शालीन, सर्वस्पर्शी राजनीति के अजातशत्रु राजर्षि हैं. उनका नागपुर जाना वैचारिक अस्पृश्यता के विरुद्ध बौद्धिक सत्याग्रह है, जो एक अनुकरणीय उदाहरण है.
यह कहना कठिन है कि प्रणब दा की बेटी, जो कांग्रेस नेता हैं, ने क्यों सार्वजनिक रूप से अपने पिता के फैसले को कटघरे में खड़ा किया? क्या बेटी का अपने पिता से संवाद ट्वीट के जरिये हो, यह अब नया रिश्ता है? क्या वह जो कहना चाहती थीं, पिता से मिलकर कह नहीं पायी थीं? या बेटी होने पर कांग्रेस नेता होना ज्यादा भारी पड़ गया?
जिस देश में बौद्धिक वातावरण की पहचान ही वैचारिक स्वतंत्रता से हमेशा नापी गयी हो, वहां एक पूर्व राष्ट्रपति का एक विराट भारतीय देशभक्त संगठन के कार्यक्रम में जाने पर उठा विरोध सार्वजनिक जीवन में बढ़ते तालिबानीकरण का उदाहरण है.प्रणब मुखर्जी ने वहां क्या कहा या क्या नहीं कहा, यह अब गौण हो गया है. लेकिन, संघ कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति मात्र ने ही वैचारिक छुआछूत का नफरत भरा ढांचा ढहा दिया.

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