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मजबूत संकल्प से निर्मल होगी गंगा

अपने विहंगम घाटों की वजह के दुनियाभर में मशहूर वाराणसी भारत के 16वें आमचुनाव में राजनीति का केंद्र बिंदु रहा. चुनावी मुकाबलों के अलावा यहां से विजयी उम्मीदवार सह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मुङो गंगा ने बुलाया है’ जैसे विज्ञापनों के संवाद से मतदाताओं को आकृष्ट करने में सफलता पायी. चुनाव खत्म हो […]

अपने विहंगम घाटों की वजह के दुनियाभर में मशहूर वाराणसी भारत के 16वें आमचुनाव में राजनीति का केंद्र बिंदु रहा. चुनावी मुकाबलों के अलावा यहां से विजयी उम्मीदवार सह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मुङो गंगा ने बुलाया है’ जैसे विज्ञापनों के संवाद से मतदाताओं को आकृष्ट करने में सफलता पायी.

चुनाव खत्म हो गया और चुनावी समर का केंद्र बिंदु रहा यह पौराणिक शहर भी अखबार के पहले पóो से खिसकते हुए भीतर के पृष्ठों में पुन: अपनी जगह तलाश रहा है.चुनावों के दौरान भले ही सबने गंगा में डुबकी लगायी, गंगा की आरती की और गंगा के मैलेपन को दूर करने की कसमें खायीं, लेकिन क्या इस मातृवत गंगा की दुर्दशा का लेकर कोई राजनीतिक संभावना नजर आती है? चुनाव में अपने ही प्रदेश में मुंह की खायी समाजवादी पार्टी के नेता व राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नरेंद्र मोदी के गंगा की सफाई के वादों पर प्रश्नचिह्न् लगाते हुए कहा कि देखते हैं कि आनेवाले पांच सालों में वह गंगा की किस कदर सफाई कर पाते हैं.

इस बयान का अगर राजनीतिक अर्थ न भी निकाला जाए, तो इसमें एक राज्य सरकार के द्वारा भविष्य में असहयोग का संकेत झलकता है. गंगा के मैलेपन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपनी चुनावी नैया पार करने वाले इन राजनेताओं से क्या एक स्वच्छ व शुद्घ गंगा की उम्मीद की जा सकती है?

क्या हम नवनिर्वाचित सरकार से यह आशा कर सकते हैं कि वह औद्योगिक कचरे को परंपरागत रूप से नदियों में बहाने के स्थान पर कोई वैकल्पिक व स्थायी हल निकालेगी? गंगा की निर्मलता को पुनस्र्थापित करने के लिए किसी और ‘प्लान’ की नहीं, बल्कि स्वार्थ से ऊपर उठ कर मजबूत संकल्प व सबके सहयोग की जरूरत है.

सुधीर शर्मा, रांची

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