खत्म हो रहे हाथ के कारीगर
मशीनीकरण इतना बढ़ चुका है कि हाथ के कारीगर गिने-चुने ही रह गये हैं. बड़े-बड़े ब्रांड के उत्पादों की चकाचौंध में हाथ का छोटा कारोबार खत्म होने की कगार पर है. पीढ़ियों से पेशे के तौर पर चलते आ रहे कार्य को अब नयी पीढ़ी आगे बढ़ना ही नहीं चाहती क्योंकि कड़ी मेहनत के बावजूद […]
मशीनीकरण इतना बढ़ चुका है कि हाथ के कारीगर गिने-चुने ही रह गये हैं. बड़े-बड़े ब्रांड के उत्पादों की चकाचौंध में हाथ का छोटा कारोबार खत्म होने की कगार पर है. पीढ़ियों से पेशे के तौर पर चलते आ रहे कार्य को अब नयी पीढ़ी आगे बढ़ना ही नहीं चाहती क्योंकि कड़ी मेहनत के बावजूद छोटी कमाई से पेट नहीं भरता. इस धंधे को आगे बढ़ाने का मनोबल तक नहीं जुटा पा रहे हैं.
सरकार की तरफ से भले ही योजनाएं बनी हो और बजट में आवंटन हुआ हो, लेकिन कारीगरों के हालात से अंदाज लगाया जा सकता है कि ये सारी योजनाएं केवल कागजों में सिमट कर रह गयी हैं. हाथों के हुनर व कारीगरी को ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोलने होंगे, जिससे इसको खत्म होने से बचाया जा सके.
महेश कुमार, इमेल से