वैश्विक शांति सूचकांक की रिपोर्ट में भारत के लिए कुछ अच्छी खबर है, तो कुछ चिंताजनक भी. अच्छी खबर यह है कि पिछले साल के मुकाबले दुनिया के 85 मुल्कों में शांति कमतर हुई है, जबकि 75 देशों में सुधार दर्ज किया गया है, जिनमें भारत भी शामिल है.
अमन-चैन की बहाली से जुड़ी कई जरूरी स्थितियों (जैसे- सुरक्षा इंतजाम पर खर्च, राजनीतिक अस्थिरता, आंतरिक संघर्ष, बाहरी हमले आदि) के आकलन के आधार पर पिछले साल के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर मानी गयी है. इस रिपोर्ट में जिक्र है कि दक्षिण एशिया के सबसे ज्यादा आबादीवाले देश भारत में सरकार ने हिंसक अपराधों पर रोक लगाने में अपेक्षाकृत कामयाबी पायी है. हथियारों की आयात पर भी पिछले साल के मुकाबले कम खर्च हुआ है यानी सैन्यीकरण की गति कम है. इन कारणों से रिपोर्ट में भारत का अंकमान सुधरा है.
लेकिन चिंता की बात यह है कि पिछले साल की तुलना में अमन के हालात कहीं ज्यादा बेहतर रहने के बावजूद भारत 163 देशों की सूची में अब भी बहुत पीछे 136वें स्थान पर है और हिंसा की स्थितियों से निपटने, उनके असर तथा संभावित आर्थिक वृद्धि को पहुंचती बाधा की भारत को बहुत बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत ब्रिक्स में शामिल देशों- चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका- से पीछे है, पर रूस से कुछ आगे है. सूची में रूस का स्थान भारत से 18 पायदान पीछे है.
इस मामले में हम स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आगे हैं, लेकिन शांति की दशाओं की बहाली के लिहाज से दक्षिण एशिया के देशों में भूटान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश कहीं ज्यादा आगे हैं. यह कहकर संतोष नहीं किया जा सकता है कि हिंसा की स्थितियों के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था को जितना नुकसान हुआ है, उसकी तुलना में भारत में हुआ आर्थिक नुकसान कम है. पिछले साल वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिंसा के कारण लगभग 996 लाख करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा, जो कुल वैश्विक घरेलू उत्पादन का 12.4 फीसदी है. भारत को यह नुकसान 80 लाख करोड़ रुपये का है.
यह राशि देश की जीडीपी का (क्रयशक्ति के तुलनात्मक आकलन के आधार पर) नौ फीसदी है. प्रति व्यक्ति के हिसाब से यह आंकड़ा लगभग 40 हजार रुपये का है. इस रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि भारत में राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक संघर्ष की स्थितियों में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है. लिहाजा, इन कारकों के प्रभाव कम करने की दिशा में प्रभावी कदम उठाने होंगे.
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने के लिए जरूरी है कि अमन-चैन की बदहाली जैसी वजहों से उसे बेजा नुकसान न हो. एक शांतिपूर्ण समाज में ही समृद्धि और प्रगति के स्थायित्व की गारंटी हो सकती है, अन्यथा लोग प्रतिभा और क्षमता के समुचित उपयोग से देश के सर्वांगीण विकास में योगदान करने से वंचित रह जायेंगे.