IIरविभूषणII
वरिष्ठ साहित्यकार
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में तृतीय शिक्षा वर्ग कोर्स सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. इस कोर्स के बाद ही संघ के स्वयं सेवक प्रचारक बनते हैं. इसके बाद किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं रहती. इस वर्ष 700 स्वयंसेवक इस कोर्स में उपस्थित थे. आरएसएस प्रचारकों के इस वर्ष के दीक्षांत समारोह में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (11.12.1935) मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे. आमंत्रण के पहले काफी टीका-टिप्पणी की गयी थी और भाषण (7 जून, 2018) के बाद भी काफी कुछ लिखा और कहा जा रहा है.
प्रणब मुखर्जी को ‘भारतीय राजनीति का इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाता है. कांग्रेस और राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के गौरवशाली इतिहास से वे अच्छी तरह परिचित हैं. नागपुर के रेशम बाग में उन्होंने केशव बलिराम हेडगेवार (1.04.1889 – 21.06.1940) को भारतमाता का महान सपूत कहा. हेडगेवार के जन्म के पहले कांग्रेस की स्थापना (1885) हो चुकी थी. कांग्रेस में रहते हुए हेडगेवार दो बार जेल गये थे. बाद में उन्होंने कांग्रेस से अपने को अलग कर लिया था.
प्रणब मुखर्जी के भाषण के पूर्व सर संघचालक मोहन भागवत (11.07.1950) ने 17 लोगों को साथ लेकर हेडगेवार द्वारा हिंदू समाज को संगठित करने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना (विजयदशमी,1925) की बात कही. संघ का जन्म भारतीय समाज नहीं, हिंदू समाज को संगठित करने के लिए हुआ. आरएसएस की स्थापना संयुक्त स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध करने के लिए हुई थी. हेडगेवार ने आरएसएस को ब्रिटिश विरोधी आंदोलन से दूर रखा. गांधी (02.10.1869 से 30.01.1948) ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वाधीनता आंदोलन में सभी भारतवासियों को एकजुट कर रहे थे और संघ के संस्थापक सर संघचालक हेडगेवार की चिंता में केवल हिंदू थे.
18 मार्च, 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (25.12.1924) ने हेडगेवार पर डाक टिकट जारी करते हुए उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी कहा था, जबकि स्वाधीनता आंदोलन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. ‘केशव संघ निर्माता’ पुस्तक (1979) के लेखक सीपी मिसीकर के अनुसार संघ की स्थापना के बाद हेडगेवार ने अपने भाषणों में केवल हिंदू संगठन की बात की. सरकार पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं की. हेडगेवार और आरएसएस ने कभी तिरंगे का सम्मान नहीं किया, जिसे हाथों में लेकर हजारों युवकों ने अपनी जान गंवायी थी.
कांग्रेस ने जब 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव पास किया था, हेडगेवार ने संघ के कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को अपने भगवा ध्वज के सामने झुकने को कहा. 17 वर्ष बाद स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त,1947) की पूर्व संध्या पर संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने तिरंगे का विरोध किया था.
7 जून, 2018 को संघ के प्रचारकों के दीक्षांत समारोह में न तिरंगा लहराया गया, न जन-गण-मन गाया गया. प्रणब मुखर्जी आरएसएस के भगवा ध्वज के सामने खड़े रहे सावधान मुद्रा में. वहां संघ की प्रार्थना गायी- ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि’, जो संस्कृत प्रोफेसर नरहर नारायण भिडे द्वारा रचित है और जिसे पहली बार 18 मई, 1940 को यादव राज जोशी ने गाया था.
प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर बातें कहीं. भारत के राष्ट्रवाद को ‘वसुधैव कुटुबंकम्’ से प्रेरित माना और भेदभाव, नफरत से भारतीय पहचान पर पड़ रहे खतरे की बात कही. उन्होंने राष्ट्रवाद को किसी भी धर्म, जाति और भाषा से न जुड़ने की बात कही, पर भारतीय राष्ट्रवाद पर बात करते हुए ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ का एक बार भी उल्लेख नहीं किया. उनका भाषण निर्गुण भाषण था. उनके और मोहन भागवत के भाषणों में संकेत कम नहीं थे. भारतीय राष्ट्र का अर्थ उनके यहां हिंदू राष्ट्र है.
प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में ‘हिंदू राष्ट्र’ पर ध्यान नहीं दिया. हेडगेवार को ‘भारत माता का महान सपूत’ उनके द्वारा कहा जाना बहुतों को नागवार लगा है. शम्सुल इस्लाम (13.03.1942) ने उन्हें एक खुला पत्र अगले दिन (8.06.2018) लिखा और हेडगेवार पर लिखी एचबी शेषाद्रि, सीपी मिसीकर, एचबी पिगले और एनएच पालकर की आधिकारिक पुस्तकों से सप्रमाण यह साबित किया है कि हेडगेवार तिरंगे के खिलाफ थे, कट्टर जातिवादी थे और स्वतंत्रता आंदोलन के खिलाफ थे.
प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में जो भी कहा है, उस पर विस्तार पूर्वक विचार होता रहेगा. क्योंकि अब वह प्रामाणिक है, उसी प्रकार, जिस प्रकार हेडगेवार के कथन हमारे समक्ष हैं. तथ्यों, साक्ष्यों के आधार पर आज संवाद आवश्यक है. सर संघचालक मोहन भागवत ने आरएसएस को ‘डेमोक्रेटिक माइंड’ वाला संगठन कहा है. अब इस पर बहस होती रहेगी कि हेडगेवार कैसे भारत माता के सपूत हैं? क्या उसी अर्थ में जिस अर्थ भगत सिंह, आजाद, अशफाकउल्ला खां और वे सब क्रांतिकारी-आंदोलनकारी, जो बलिदानी थे?
अटल जी ने हेडगेवार को ‘महान स्वतंत्रता सेनानी’ कहा था और अब प्रणब मुखर्जी ने उन्हें ‘भारत माता का महान सपूत’ कहा है. ‘स्वतंत्रता सेनानी’ तो नहीं पर इसकी पूरी संभावना है कि अागामी दिनों में अटल जी और प्रणब मुखर्जी दोनों को ‘भारत माता का महान सपूत’ कहा जाये. संवाद आवश्यक है, क्योंकि यह लोकतंत्र का प्राण है.